कोरिया बैकुण्ठपुर :- स्व0 ड़ाॅ रामचन्द्र सिंहदेव जी का जन्म 13 फरवरी 1930 को हुआ. उनकी स्कूली शिक्षा राजकुमार कालेज रायपुर से हुई. इसके बाद उच्चशिक्षा के लिए वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय गये. यहीं से रामचन्द्र सिंहदेव ने लाइफ साइंस में पीएचडी की. वे सफल राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, लेखक के साथ ही फोटोग्राफर भी थे.
डॉ. सिंहदेव ने देश के मशहूर फिल्म निर्माता सत्यजीत रे के साथ 2 सालों तक लघु फ़िल्म निर्माण का काम किया. इसके बाद पहली बार साल 1967 में चुनाव लड़ा. इस चुनाव में कुल 40 हजार 135 मत पड़े थे. इनमें से 35 हजार 867 मत डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव के पक्ष में था. यानी कुल मतों का करीब 90 फीसदी मत रामचन्द्र सिंहदेव को ही मिला था. मौजूदा दौर में ये रिकॉर्ड वोटों से मिली जीत थी. इसके बाद उन्हें चुनाव में कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ा.
कोरिया कुमार के नाम से पहचाने जाने वाले डॉ रामचंद्र सिंहदेव पिता राजा रामानुजप्रताप सिंहदेव अपने सहज व मिलनसार व्यवहार के करण काफी लोकप्रिय थे। डॉ रामचंद्र सिंहदेव को भी अपने पिता की तरह ही व्यापक लोकप्रियता मिला। वे अपनी इमानदारी और दृढ़ संकल्प जैसी विशेषताओं के चलते दलगत राजनीति से हटकर हर एक वर्ग के बीच लोकप्रिय बने।
बैकुंठपुर राज परिवार के छोटे लाडले डॉ सिंहदेव अनुशासन प्रियता के लिए जाने जाते हैं। अपने जीवन को लेकर वो कहते थे कि मैं कुछ करना चाहता था, यह बेचैनी मुझे कलकत्ता ले गई और फोटोग्राफर बन गया। सिंहदेव ने अपने जीवन में कई शानदार फोटोग्राफ्स खींचे जो काफी लोकप्रिय हुए।
कलकत्ता से लौटने के बाद सक्रिय राजनीति में आए। इसे सेवा का शसक्त माध्यम मानते हुए सन 1967 में बैकुण्ठपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 64 हजार मतदाताओं इस क्षेत्र से 35 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद लगातार राजनीतिक सक्रियता बढ़ती गई। इमेरजेंसी के दौरान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द नारायण मिश्र के मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे । उनके पास कई बड़े विभागों की जिम्मेदारी थी। तब इनके समकक्ष नेता डीपी मिश्रा, अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल आदि थे।
मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ में जब पहली सरकार बनी तो रामचन्द्र सिंहदेव वित्त मंत्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का जानकार माना जाता था। इससे पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में भी वे कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। रामचंद्र सिंहदेव को कोरिया कुमार के नाम से भी जाना जाता है। डा सिंह देव की स्कूली शिक्षा राजकुमार कालेज से हुई है। उसके बाद आगे की शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय गये जहा पर उनके सहपाठी विश्वनाथ प्रताप सिंह व नारायण दत्त तिवारी रहे। साथ ही भूतपूर्व मूख्य मंत्री अर्जुन सिंह व पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी सिंह उनके जूनियर रहे है। कोरिया राजघराने के रामचंद्र सिंहदेव ने 1967 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर सरकार में 16 विभागों के मंत्री बने थे। इसके बाद से वे अब तक 6 बार चुनाव जीतकर अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्री पदों पर आसीन रहे हैं।
कांग्रेस ने उन्हे सन 1979 में टिकट नहीं दिया । काफी मान मनौव्वल के बाद 1982 से 90 तक वो प्लानिंग बोर्ड के सदस्य और उपाध्यक्ष के तौर पर रहें। इसके बाद जब 1988 में भी कांग्रेस ने उन्हे तरजीह नहीं देकर टीएस सिंह देव को टिकट दे दिया तो इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में बड़ी जीत हासिल की।
वर्ष 1993 में कांग्रेस की टिकट पर दोबारा विघायक बने। 1998 में जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्हें सिंचाई मंत्री बनाया गया। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद जोगी मंत्रीमण्डल में वित्त विभाग की जवाबदारी निभाई।
आज के गणतंत्र में काबिल और ईमानदार लोगों के लिए कोई जगह नहीं बची। किन्तु अपने लम्बे उतार चडाव भरे राजनीतिक कैरियर होने के बावजूद कभी उन पर न तो विधानसभा के बाहर और न ही भीतर उन पर भ्रष्टाचार का एक आरोप लगा। लोग उनसे बदलने की सलाह देते रहे किन्तु कोई भी उन्हे ईमानदारी से नहीं डिगा पाया।
डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव भारतीय सांस्कृतिक निधि याने इंटैक के प्रारंभ से सदस्य थे और छत्तीसगढ़ में उसकी गतिविधियों में खासी दिलचस्पी लिया करते थे। यह श्रेय उन्हीं को जाता है कि सरगुजा, कोरिया और कवर्धा में इंटैक के जिला अध्याय स्थापित हो सके। जब उन्हें मालूम हुआ कि केन्द्र सरकार ने इंटैक को सौ करोड़ रुपए की एकमुश्त अनुदान निधि दी है तो वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार से भी हमें पांच करोड़ रुपए का एकमुश्त अनुदान मिल जाए तो प्रदेश की विरासत संपदा के संरक्षण की दिशा में काफी काम किया जा सकेगा। इसके लिए उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। यद्यपि उस पर कोई फैसला नहीं हो पाया। सिंहदेव जी की पर्यावरण में जो रुचि थी उसे देखकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने एक बार उन्हें छत्तीसगढ़ के पेड़-पौधों पर संदर्भ ग्रंथ लिखने का आग्रह किया था। सिंहदेव जी किन्हीं कारणों से उनका अनुरोध स्वीकार नहीं कर पाए।
सिंहदेव जी को कोरिया के बाद अगर कोई दूसरी जगह पसंद थी तो वह कोलकाता थी जहां उन्होंने अपनी युवावस्था बिताई और जहां पहुंचकर उन्हें एक बौद्धिक संतुष्टि मिलती थी। बस्तर से उन्हें बहुत लगाव था। साल में एक बार तो वे जाते ही थे। उनके जाने का मतलब होता था वन विभाग के अधिकारियों की परेड। वे उनके साथ बस्तर के विकास पर चर्चा करते, दूरदराज के इलाकों का दौरा करते और फिर सुझाव देते कि आदिवासियों के सुरक्षित सम्मानपूर्वक जीवनयापन के लिए क्या किया जाए। वे चाहते थे कि बस्तर सहित प्रदेश के अन्य इलाकों में लाख का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो जिससे विशेषकर आदिवासियों को रोजगार मिले। बस्तर में चाय, कॉफी और काजू की फसल लेने और उसका स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण करने का सुझाव भी वे देते थे। उन्होंने 1984 में बस्तर विकास योजना तैयार की थी। इसमें वे तमाम विचार संकलित हैं जो आज भी उपयोगी और प्रासंगिक हैं। उन्होंने इसी तरहजशपुर जिले में जैतून की बागवानी करने की सलाह सरकार को दी थी।
डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव के मन में अपने गृहनगर बैकुण्ठपुर और कोरिया जिले का विकास सर्वोपरि था। इसके लिए वे बराबर सतर्क रहते थे कि जिले के कलेक्टर पद और अन्य प्रशासनिक पदों पर साफ-सुथरी छवि के अफसर नियुक्त हों।
स्व0 डॉ.रामचंद्र सिंहदेव जी का निधन-
88 वर्ष की आयु में ड़ाॅ रामचन्द्र सिंहदेव जी का स्वर्गवास हो गया।
स्व0 ड़ाॅ रामचन्द्र सिंहदेव जी को सांस लेने में तकलीफ के कारण रायपुर के रामकृष्ण अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। उनकी तबीयत लगातार गंभीर बनी हुई थी। इस बीच उनके निधन की खबर आई। वो 88 साल के थे।