रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी अंतर्गत बने गोठानों में गोबर के गमले तो तैयार हो गए, लेकिन इन्हें ग्राहक नहीं मिल रहे हैं। अब दिन-रात मेहनत कर गमलों को तैयार कर रही समूह की महिलाओं के सामने मजदूरी का संकट उत्पन्न हो गया है क्योंकि जब तक गमलों की बिक्री नहीं हो जाएगी, समूह से जुड़ी महिलाओं को मजदूरी नहीं मिलेगी। जबकि सरपंच से लेकर विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि शासकीय नर्सरी, वन विभाग, कृषि विज्ञान केंद्रों में बड़े स्तर पर गमलों की सप्लाई होगी।
इस आश्वासन पर तीन महीने में ही समूह की महिलाओं ने लगभग 25 हजार गोबर के गमले तैयार कर लिया। वहीं समूह की महिलाओं ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अब अधिकारी कहते हैं कि शासकीय विभागों में छोटे गमले चाहिए।
राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को अधिकारी ही विफल करने पर आमादा हैं। गोठानों में तैयार गोबर के गमलों की शासकीय नर्सरियों से लेकर वन विभाग, कृषि विज्ञान केंद्रों में सप्लाई स्र्क गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह सब कमीशन के कारण हो रहा है। महिला समूहों द्वारा तैयार गोबर के गमलों से कोई कमीशन मिलता नहीं दिख रहा है, इसलिए अफसर इसमें स्र्चि नहीं ले रहे हैं। सरकारी नर्सरी में अभी भी प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है।
शासकीय विभागों में अभी तक सिर्फ पांच हजार गोबर के गमलों की खपत हुई है। शेष गमलों को गोठान में चूहे खा रहे हैं। तीन महीने में लगभग 25 हजार गोबर के गमले तैयार करने में समूह की महिलाओं ने दिन रात एक कर दिया। लेकिन मजदूरी के लिए उन्हें सरपंच से लेकर अधिकारियों का मुंह ताकना पड़ रहा है।
विजय लक्ष्मी समूह और दुर्गा शक्ति समूह की महिलाओं का कहना है कि गमले की डिमांड नहीं है तो इसमें हमारा क्या कसूर है? सरपंच व अधिकारी ने जो जिम्मेदारी दी, उसे पूरा कर दिया है। इसलिए 85 दिन की मजदूरी तीन सौ स्र्पये के हिसाब से चाहिए, नहीं तो मुख्यमंत्री से गुहार लगाएंगे।
मांग के अनुरूप विभागों में सप्लाई की जा रही है। प्राइवेट नर्सरियों से भी मांग आई है। इससे जुलाई माह से गमले की मांग नर्सरियों में बढ़ेगी। समूह की महिलाओं को मजदूरी तो जारी कर दी गई। उन्हें नहीं मिली है, इसके बारे में पता करके ही कुछ बता पाऊंगा।