रायपुर। बेमौसम बारिश और ओले वृष्टि से किसानों को लाखों रुपये का नुकसान होता है। ऐसे में किसानों के लिए जिकमीकंद की खेती कमाई का अच्छा जरिया बन सकती है। इसके लिए परंपरागत तरीका छोड़ वैज्ञानिक विधि अपनाना होगा। कवर्धा जिले के दावजरी गांव के एक किसान दो एकड़ में जिमीकंद की खेती कर रहे हैं। जहां एक साल में एक एकड़ में एक लाख रुपये से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। इसके अलावा खेती के माध्यम से रोज 10 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।
किसान सुरेंद्र चंद्रवंशी बताते हैं कि करीब तीन वर्ष से अधिक समय से खेती का कार्य कर रहे हैं। वहीं इस साल दो एकड़ में जिमीकंद लगाया है। इसकी डिमांड की बात करें तो छत्तीसगढ़ के अलावा देश के बड़े महानगरों से डिमांड है। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ की जिमीकंद का डिमांड खाने के लिए नहीं बल्कि चिकित्सक दवाइयां बनाने के लिए आर्डर दे रहे हैं।
किसान सुरेंद्र ने बताया कि पहले जिमीकंद की खेती घर के बाड़ी में थोड़ा बहुत की जाती थी। वर्तमान में अत्यधिक उपज, लाभ के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके लिए वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार जिमीकंद की फसल गर्म जलवायु में 25-35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बीच होती है।
वहीं अच्छे बिखराव के साथ 1000-1500 मिमी वर्षा फसल वृद्धि और कंद उत्पादन में भी सहायक है। रेतीले जमीन में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। खेत में उत्तम जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए। खेती योग्य भूमि तैयार करने के लिए तीन-चार बार जोताई देशी हल से अच्छी तरह करके मिट्टी को भुरभुरी, मुलायम और समतल कर लेना चाहिए।
जिमीकंद आमतौर पर छह से आठ माह में तैयार होने वाली फसल है। यह प्राय: छत्तीसगढ़ में अप्रैल माह में लगाया जा रहा है। वहीं जहां पर पानी की सुविधा नहीं रहती वहां जून के अंतिम सप्ताह में मानसून शुरू होने पर लगाया जाता है। वहीं इसकी प्रजातियों की बात करें तो गजेंद्रा, संतरागाची, श्रीपद्मा, आजाद, श्री आतिरा, एनडीए-9 आदि प्रमुख हैं। इनकी उत्पादन क्षमता 40 से 100 टन प्रति हेक्टेयर है।
चिकित्सक बताते हैं कि जिमीकंद में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेड, खनिज पदार्थ, कैल्शियम व फास्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। वहीं इसका प्रयोग सब्जी, आचार, चटनी, चिप्स, नमकीन आदि के रूप में किया जाता है। डॉ. शुक्ला ने बताया कि जिमीकंद में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। बवासीर, पेचिस, रक्त विकार, दमा, वमन, फेफड़े के सूजन आदि में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। बताया जाता है जिमीकंद खुजली और उदर संबंधी विकारों में भी लाभदायक है।