रायपुर। किसान अर्थात अन्नदाता जिनके बगैर अन्न मिलना मुश्किल है। अगर फसल की पैदावार बेहतर नहीं हुई तो रसोई से लेकर देश भर में महंगाई की चर्चा शुरू हो जाती है। इसके बावजूद लोग किसान बनकर खेती नहीं करना चाहते। आधुनिक यंत्र भी बगैर किसान और खेत के असफल हैं। दूसरी ओर कुछ किसान जागरूक हैं। उन्होंने सेमिनार सोशल मीडिया कृषि विज्ञान केंद्रों के साइंटिस्टों की रिसर्च को खेतों में प्रैक्टिकल के रूप में अजमाया है। इससे पैदावार बढ़ी और उनकी इन्कम दोगुनी हो गई है। आज का दिन यानी 23 दिसंबर उन्हीं किसानों को समर्पित है जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी भी कहे जाते हैं। इस अवसर पर नईदुनिया ने प्रदेश के कुछ जागरूक किसानों से बातचीत की कि उन्होंने कैसे उन्नाति की।
दुर्ग जिले के पिसे गांव निवासी अनिल चौहरिया प्रगतिशील एवं नवाचारी कृषक हैं। पिता श्यामलाल चौहरिया की कैंसर से मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी अनिल के कंधे पर आ गई। उन्होंने छत्तीसगढ़ कामधेनु विवि अंजोरा के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया। खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाना था। ऐसे में वैज्ञानिकों ने कुछ दिन इंतजार करने को कहा। अनिल ने हिम्मत नहीं हारी। खेत में गोबरए गौमूत्र का लगातार छिड़काव करते रहे। इसका असर यह हुआ कि रासायनिक खाद से छुटकारा मिल गया। तीन वर्ष में वे पूर्णतः उन्नत जैविक खेती करने लगे। इससे आमदनी बढ़ी तो परिवार की 12 एकड़ खेती का रकबा बढ़कर 25 एकड़ हो गया। आज वे 25 एकड़ में खरीफ एवं रबी में सुगंधित धान विष्णुभोगए तुलसीमाला की फसल लेते हैं।
महासमुंद जिले में मुख्य फसल धान है। खरीफ में यहां 241 लाख हेक्टेयर में धान की फसल ली जाती हैए लेकिन लाखों टन पैरा खेत में पड़े.पड़े सड़ जाता है। इसे देखते हुए जिले के बसना विकासखंड के पटियापाली गांव के राजेंद्र साहू ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से सलाह मांगी। उनकी सलाह पर व्यर्थ पैरे का उपयोग मशरूम उत्पादन में करने लगे। आज उन्हें प्रति वर्ष 5 से 6 लाख रुपये की आमदनी होती है। वे आयस्टर मशरूम का उत्पादन अक्टूबर से फरवरी तक करते हैं। पांच किलो पैरा कटिया को 50 लीटर पानी में फार्मलीन बेवस्टीन डालकर उपचारित करते हैं। फिर पानी को निथार कर इसमें मशरूम का बीज मिलाकर बैग बनाते हैं। बैग को उत्पादन कक्ष में टांग दिया जाता है। इनमें 18- 20 दिन में मशरूम तैयार हो जाता है।
इसलिए मनाया जाता है किसान दिवस
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह 23 दिसंबर को पैदा हुए थे। वे किसानों के हितैषी थे। इसलिए उन्हीं के सम्मान में 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाते हैं। वे देश के पांचवें प्रधानमंत्री थे। उनका कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक रहा। लोग उन्हें किसानों के मसीहा के रूप में भी जानते हैं।
किसानों को आय दोगुनी करना हो तो अपनाना होगा ये फॉर्मूला..
रायपुर। किसान अर्थात अन्नदाता जिनके बगैर अन्न मिलना मुश्किल है। अगर फसल की पैदावार बेहतर नहीं हुई तो रसोई से लेकर देश भर में महंगाई की चर्चा शुरू हो जाती है।