बीजापुर । मुख्यालय से 60 किमी की दूरी पर बसा सारकेगड़ा गांव। ग्रामीणों के बीच सिर्फ घटना वाले दिन का मंजर और न्याय मिलने की उम्मीद पर ही चर्चा हो रही है। आंखें डबडबाई हुई हैं लेकिन डबडबाई आंखों में न्याय मिलने की उम्मीद तैरती दिखती है। कैमरे का फ्लैश चमकते ही एक महिला फफक पड़ती है। कहती है कि न्याय तभी मिलेगा जब दोषी जवानों को फांसी की सजा मिलेगी। ग्रामीण कहते हैं कि नक्सली मुठभेड़ बता कर हत्या भी की और मुंह बंद कराने के लिए दो-दो लाख रुपये मुआवजा भी दिया गया था। मुआवजा देकर पुलिस के तत्कालीन बड़े अधिकारियों ने मुंह बंद रखने की चेतावनी भी दी थी। ग्रामीण उस खौफनाक दिन की चर्चा फफकते हुए करते हैं। बताते हैं कि जिस जगह वारदात हुई थी, वह गांव के ठीक बीच में है।
मुठभेड़ स्थल के आसपास रहने वालों ने अपना घर बदल लिया है। जिस त्योहार को मनाने के लिए एकत्र ग्रामीणों पर फोर्स ने फायरिंग की थी, वह त्योहार तो अब भी मनाया जाता है लेकिन उसका स्थल बदल दिया गया है। ग्रामीण कहते हैं कि जहां घटना हुई थी उस मैदान के आसपास से गुजरने पर अब भी दहशत होती है। सारकेगुड़ा जांच आयोग की रिपोर्ट के बारे में सबसे पहले गांव की महिला कमला को जानकारी मिली। वह अब गांव में नहीं रहती। उन्होंने रत्ना मड़कम को फोन पर इसकी जानकारी दी। रत्ना ने रात में ही गांव वालों की बैठक बुलाई और सबको इस बारे में बताया। ग्रामीणों को पहले तो भरोसा ही नहीं हुआ। अब वे सब खुश हैं पर कह रहे कि अभी काम अधूरा ही हुआ है। शांता मड़कम के दो बेटे सुरेश और नागेश इस घटना में मारे गए थे। नागेश दसवीं का छात्र था जबकि सुरेश उससे भी छोटा था।
बुजर्ग शांता कहती हैं कि रात दस बजे गांव के बीच फोर्स पहुंची। बिना चेतावनी दिए ताबड़तोड़ गोली चलाने लगे। लोग मरते रहे और वे फायरिंग करते रहे। एक अन्य मृतक इरपा रमेश का बेटा तरूण अभी महज 11 साल का है। उसकी आंखें डबडबा आईं। घटना में मारे गए इरपा दिनेश की पत्नी जानकी को इस बात का दुःख है कि उसके पति के अंतिम संस्कार का अवसर भी उन्हें नहीं दिया गया। जानकी के चार मासूम बच्चे हैं, पूजा, मनीषा, अंजनी और एक बेटा करण। वह बताती है कि उसके पति आंध्र में ठेके पर काम करने गए थे। वहां उन्हें खाकी पैंट दिया गया था। इसी आधार पर फोर्स उन्हें नक्सली ठहराती रही। हमने बासागुड़ा थाने का बहुत चक्कर लगाया पर पुलिस मानने को तैयार ही नहीं थी। उन्होंने ऐसे ही शव को जला दिया। घटना के बाद कई साल तक खेती किसानी बंद रही। धीरे-धीरे अब हालात बदल रहे हैं। इस साल धान बोया गया है। घटना में तीन गांव राजपेंटा, कोत्तागुड़ा और सारकेगुड़ा के ग्रामीण मारे गए थे। मृतकों में कई एक ही परिवार के थे। शांता मड़कम के दोनों बेटे मारे गए। उसकी जिंदगी सामान्य कैसे हो। मृतक इरपा नारायण के तीन छोटे बच्चे हैं। उसकी पत्नी दूसरे के साथ जा चुकी है। बच्चों की देखभाल ग्रामीण करते हैं।