अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश फिर स्थाई लोक अदालत के चेयरमैन का महत्वपूर्ण पद संभालने वाले जज अनिल गायकवाड़ ने सिर्फ इसलिए नौकरी छोड़ दी कि कानूनी व्यवस्था में इतनी उलझने और पेंच हैं कि अनपढ़ और आर्थिक रूप से कमजोर लोग न्याय के मंदिर तक नहीं पहुंच पाते। गरीबों की पीड़ा उनसे देखी नहीं गई । न्यायदान के लिए महत्वपूर्ण पद पर काबिज रहने के दौरान जब उन्होंने इस तरह की उलझनों को देखा तो मन विचलित हो उठा । फिर उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो हो जाए । न्यायदान में गरीबों को मदद करनी है। वर्ष 2013 में उन्होंने अपने संकल्प को अमलीजामा पहनाया । स्थाई लोक अदालत के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया । नौकरी छोड़ दी ।
बीते सात वर्षों से वह लोगों को कानूनी सहायता उपलब्ध करा रहे हैं । मामले मुकदमे से संबंधित जानकारी देने के साथ ही जरूरत पड़ने पर गरीबों का मामला खुद ही लड़ रहे हैं। कोर्ट रूम में पैरवी भी करते नजर आ जाते हैं। जज गायकवाड़ का कहना है कि कॉलेज के दिनों में ही मैंने एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लॉ को कॅरियर के रूप में चुना । वकील बनकर जरूरतमंदों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना और कानून के प्रति जागरुक करने का संकल्प लिया था। विधि स्नातक के बाद जज बन गया। दूरस्थ वनांचलों में वे प्रति महीने तीन दिन का कैंप करते हैं। इस दौरान वे वनवासियों सहित आसपास के ग्रामीणों की क्लास भी लेते हैं। संविधान में दिए गए अधिकारों के प्रति जागरुक करने के साथ ही कानूनी मदद भी करते हैं। कैंप में ही जरूरतमंदों को कानूनी लड़ाई लड़ने सलाह देते हैं । उनका मामला मुकदमा भी खुद ही तैयार करते हैं। मामला लड़ने के एवज में फीस भी नहीं लेते । इसे दिवानगी कहें या फिर कानून के प्रति गहरी आस्था गरीबों को कोर्ट आने जाने का खर्च भी खुद ही वहन करते हैं।