भारत एक ऐसा देश है, जहां सब कुछ संविधान और विधान पर कायम है। इसके अनुसार सब कुछ चलता है। भारतीय संविधान से कुछ भी बाहर नहीं है। धन्य हैं ऐसी महान विभूतियां, जिन्होंने अपनी कलम की स्याही से सींचने और संविधान तैयार करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। उनके योगदान पर आज भी भारतवासी गर्व महसूस करते हैं। 26 जनवरी, 1950 को जो भारतीय संविधान लागू हुआ, उसके निर्माण में जहां देशभर की महान विभूतियों ने अपना योगदान दिया, वहीं छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों ने भी खास भूमिका निभाई, जिनके हस्ताक्षर भारतीय संविधान की मूल प्रति पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं। मूल प्रति पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पं. सुंदरलाल शर्मा केंद्रीय ग्रंथालय मौजूद है, जिसे कोई भी देख सकता है, पढ़ सकता है।
खास बात यह है कि इस प्रति में एक भी संशोधन नहीं है। इस वजह से आज भी पूरे प्रदेश के कानून के जानकार इस प्रति को देखने आते हैं। देश में हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। इस दिन संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर को याद किया जाता है। 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा की तरफ से इसे अपनाया गया और 26 नवंबर, 1950 को इसे लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया। यही वजह है कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है। संविधान की मूल प्रति अन्य पुस्तक के साइज में है। साथ ही पूरी पुस्तक हस्तलिखित है। पुस्तक के हर पन्ने पर लिथो प्रिंट से बॉडर वगैरह बनाया गया है, जो देखने में काफी सुंदर दिखता है। वहीं हैंडराइटिंग इतनी सुंदर है, जिसे दूरे से देखने के बाद लगता ही नहीं कि यह किसी की हैंडराइटिंग है। पुस्तक का कवर वूड प्रिंट से तैयार किया गया है, जो काफी पुरानी कला को दर्शाता है।
छत्तीसगढ़ कॉलेज के विधि विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. भूपेंद्र करवंदे ने बताया कि मध्य प्रांत एवं बरार से संविधान निर्माण परिषद् के लिए कांग्रेस की ओर से 17 सदस्य निर्वाचित हुए। छत्तीसगढ़ से इस परिषद में पं. रविशंकर शुक्ल, डॉ. छेदीलाल बैरिस्टर एवं घनश्याम सिंह शुक्ल निर्वाचित हुए। भारतीय संविधान सभा के लिए छत्तीसगढ़ के सामंतीय नरेशों की ओर से सरगुजा के दीवान रारूताब रघुराज सिंह नामजद हुए। छत्तीसगढ़ की रियासती जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए पं. किशोरी मोहन त्रिपाठी, रायगढ़ और कांकेर के रामप्रसाद पोटाई निर्वाचित किए गए। 13 दिसंबर, 1946 को पं. जवाहरलाल नेहरू ने संविधान के अस्तित्व का प्रस्ताव रखा कि भारत एक प्रजातांत्रिक एवं संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य होगा। संविधान के प्रारूप को अंतिम रूप देने के लिए डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति का गठन किया गया। इस संविधान निर्माणी परिषद् में छत्तीगढ़ को महत्वपूर्ण स्थान मिला, जिसमें दुर्ग जिले के जननेता एवं संविधान निर्माणी सभा के निर्वाचित सदस्य घनश्याम सिंह गुप्त हिंदी प्रारूप समिति के अध्यक्ष बनाए गए।