मसल्स के कारोबार में नियम-कायदे का सिस्टम पूरी तरह से लाचार है। खाद्य एवं औषधि विभाग के इंस्पेक्टर सिर्फ नमूने ही लेने में जुटे हैं। महज खानापूर्ति के लिए प्रोटीन सेप्लीमेंट के हाई डोज पाउडर के सैंपल जांच के लिए लैब में भेजे हैं, जबकि इसके लिए बीते एक हफ्ते में अभी तक लगभग 26 नमूने लिए हैं। इधर ड्रग इंस्पेक्टरों की टीम ने जिम और मेडिकल स्टोरों में जांच की, लेकिन उन्हें एक भी शक्तिवर्धक और नशीली दवाएं नहीं मिली हैं। इसके एक भी नमूने औषधि विभाग में नहीं आए। छापामारी नहीं, बल्कि सिर्फ नमूने लेने का दौर ही जारी है। प्रोटीन सेप्लीमेंट के पाउडर और नशीली दवाओं की बिक्री रोकने में सारे दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं, क्योंकि नमूने की जांच की रिपोर्ट लैब से आने में 10 से 15 दिन ही लग जाते हैं।
ऐसे में अभी तक एक भी फूड फर्म और दवा विक्रेताओं पर कार्रवाई नहीं हो सकी है। प्रोटीन सेप्लीमेंट के लिए जिले के शहर में 22 और ग्रामीण अंचल में पांच लाइसेंसधारी हैं, जिन्हें सिर्फ प्रोटीन सेप्लीमेंट के प्रोडक्ट बेचने का अधिकार हासिल है। 12 लाख रुपये से अधिक प्रोटीन के सेप्लीमेंट का कारोबार करने पर लाइसेंस की जरूरत होती है, लेकिन शहर के सभी मेडिकल स्टोर पर मसल्स बढ़ाने वाले हाई डोज के प्रोटीन सेप्लीमेंट बिक रहे हैं। कार्रवाई करने में नियम आड़े आ जा रहे हैं, क्योंकि कुछ स्टॉक रखने की इन्हें छूट है। मुंबई से नशीली दवाओं की तस्करी हो रही है। इसका इस्तेमाल जिम वाले चोरी-छिपे कर रहे हैं। ड्रग विभाग के मुताबिक विभिन्न रोगों में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन ही लगाते हैं। दरअसल अभी तक इसकी रोकथाम यानी बिना डॉक्टर की पर्ची से भी खरीदी होती है।