रुचिर अपनी नींद को लेकर जिससे भी शिकायत करता है कोई उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेता। नींद विषय ही ऐसा है कि वह चाहे कम आए या ज्यादा, लोग उसे ज्यादा तवज्जो नहीं देते। रुचिर को दिन में अचानक नींद आ जाती है। कोई भी काम चाहे कितना भी जरूरी हो, करते समय वह झपकी लेता है और कई बार गहरी नींद सो जाता है। इसके लिए अनेक बार उसका मजाक उड़ाया जाता है और उसे ताने मारे जाते हैं। दो-तीन बार वह इस कारण नौकरियों से भी हाथ धो बैठा है। लेकिन रुचिर की समस्या इस नींद की अति के साथ यह भी है कि कोई डॉक्टर उसकी परेशानी को गंभीरता से नहीं लेता। दरअसल रुचिर को नार्कोलेप्सी नामक रोग है। इस रोग में उसे बहुत-बहुत नींद आती है और नींद पर उसका कोई वश नहीं होता।
यही नहीं, नींद और जगने के बीच की स्पष्टता नहीं रहती है। इस कारण रुचिर जागते हुए भी अनेक बार स्वप्न और दुःस्वप्न देखा करता है। लेकिन ऐसा होने पर भी वह अपने हाथ-पैर हिला नहीं पाता है। इस स्थिति को स्लीप पैरालिसिस कहा जाता है। कई बार रुचिर के साथ एक अजीबोगरीब घटनाक्रम होता है। हंसते हुए या किसी आवेग के क्षण में उसके हाथ-पैर जैसे पंगु हो जाते हैं या वह चलते-चलते गिर पड़ता है। वह जाग तो रहा होता है, लेकिन अपने उस अंग को चाह कर भी हिला नहीं पाता। मेडिकल साइंस इस तरह की मांसपेशीय कमजोरी को कैटाप्लेक्सी कहती है। स्लीप पैरालिसिस की ही तरह कैटाप्लेसी भी नार्कोलेप्सी का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। कैटाप्लेक्सी की समस्या से ग्रसित रोगियों के मस्तिष्क के खास हिस्से हायपोथैलेमस में हायपोक्रेटिन नामक रसायन नहीं बनता। इस रसायन के निकलने के कारण ही हम जगे रहते हैं।
निद्रा-जागरण के चक्र हमारे दिमाग में स्पष्ट रूप से घटित हुआ करते हैं। अब जब हायपोक्रेटिन नहीं होता, तब जगे रहने और इन चक्रों की व्यवस्था में समस्या आने लगती है और व्यक्ति को नार्कोलेप्सी की समस्या परेशान करने लगती है। क्या आपके आसपास भी नींद संबंधी ऐसे लक्षणों से पीड़ित कोई व्यक्ति है? अगर हां, तो न उसका मजाक उड़ाएं और न उसके प्रति असंवेदनशील रहें। उसे किसी स्लीप-मेडिसिन के एक्सपर्ट के परामर्श की आवश्यकता है। भारत में निद्रा संबंधी रोगों के विषय में जागरूकता न के बराबर है। यहां नार्कोलेप्सी, कैटाप्लेक्सी और स्लीप पैरालिसिस जैसी समस्याओं को भूत-प्रेत-ऊपरी बाधा मानकर लोग तरह-तरह की कहानियां गढ़ा करते हैं।