साल 1990 में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर के पुनरनिर्मांण को एक जन अभियान शुरू हुआ। देश भर से हिन्दु राम भक्त राम मंदिर निर्मांण में सहयोग करने के लिए अयोध्या गए। इन्हें कार सेवक कहा गया। इन्हीं में से एक थे छत्तीसगढ़ के रहने वाले गेससिंह। अयोध्या में इस वक्त स्थिति तनावपूर्ण थी। पुलिस प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा रही थी। इसी बीच गेसराम को एक गोली लगी। गेसराम के पेट में गोली लगी थी और वे कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। इसके बाद उनकी जान बच गई, लेकिन आज गेसराम गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। रोजी-रोटी के लिए उन्हें मजबूरन भीख मांगकर गुजारा करना पड़ रहा है। राममंदिर निर्माण के लिए 1990 की कारसेवा में देश के कोने-कोने से रामभक्त अयोध्या पहुंचे थे। कारसेवा में छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से भी एक जत्था अयोध्या के लिए रवाना हुआ था। कारसेवा के लिए छत्तीसगढ़ के जत्थे में जिले की करतला तहसील के ग्राम चचिया निवासी गेसराम चौहान भी शामिल थे।
कारसेवकों पर हुई फायरिंग में गेसराम को भी गोली लगी थी। वे छत्तीसगढ़ के इकलौते ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने कारसेवा के दौरान गोली खाई थी। जब पता चला कि राममंदिर पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया तो गेसरम राम मंदिर बनने की बात सुनकर भावुकतावश रो पड़े। दरसअल राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा में शामिल हुए कुछ लोगों को राजनीतिक पहचान मिली तो कुछ लोग गुमनामी के अंधेरे में खो गए। ऐसी ही कहानी छत्तीसगढ़ के कारसेवक गेसराम चौहान की है। गेसराम चौहान कोरबा जिले की करतला तहसील के ग्राम चचिया के मूलनिवासी है। वे छत्तीसगढ़ के ऐसे एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें 1990 की कारसेवा में पेट में गोली लगी। वे 1992 की कारसेवा में भी शामिल हुए।
गेसराम ने अपने अतीत के बारे में बात करते हुए बताया कि उनके पिता एक किसान थे, लेकिन पिता की मौत के बाद भाइयों ने संपत्ती हड़प ली और उन्हें बाहर कर दिया। इसके बाद गेसराम ने धर्म और समाज के लिए अपने जीवन को समर्पित करने का फैसला किया और वे कार सेवक बन गए। कार सेवा के दौरान पेट में गोली लगने के बाद उनका शरीर बिल्कुल कमजोर पड़ गया था। गेसराम के सामने पेट भरने का सवाल था और इस वजह से उन्हें भीख मांगने को मजबूर होना पड़ा। गेसराम के दो बेटे हैं जो मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर बसर करते हैं। गेसराम अब सिमकेंदा करतला के आसपास के गांव में भीख मांग कर गुजर बसर कर रहे हैं। जब उन्हें बताया गया कि जिस राममंदिर के लिए आपने गोली खाई थी, वह अब बनने वाला है। तब 65 साल के हो चुके गेसराम अवाक हो गए। हाथ में पगड़ी लाठी, भिक्षापात्र व झोला गिर पड़ा। भावावेश में वे रोने लगे। बार-बार पूछते रहे कि अब तो रामलला का मंदिर सचमुच बनेगा