12 नवम्बर मंगलवार को सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव की जयंती है। ये नानक देव की 550वीं जयंती है। उनके जीवन के कई ऐसे किस्से हैं, जिनसे हमें सुखी और सफल जीवन की सीख मिलती है। यहां जानिए एक ऐसे प्रसंग, जिसमें गुरुनानक ने ईमानदारी काम करने की सीख है…
.चर्चित प्रसंग के अनुसार एक बार गुरुनानक देव एक गांव गए, वे वहां कुछ दिन के लिए रुक गए। ये बात आसपास के क्षेत्र में फैल गई कि एक दिव्य महापुरुष हमारे क्षेत्र में आए हैं। वहां एक धनी व्यक्ति भी रहता था, जो कि बेईमानी करके धनवान बना था। वह धनी व्यक्ति गरीबों किसानों से अनुचित लगान वसूलता और उनकी फसल भी हड़प लेता था। जब उस धनी व्यक्ति को नानकजी के बारे में पता चला तो वह उन्हें अपने महल में बुलाना चाहता था, लेकिन गुरुजी ने एक गरीब के छोटे से घर को ठहरने के लिए चुना।
.गरीब व्यक्ति ने अपने सामर्थ्य के अनुसार गुरुनानक का बहुत अच्छी तरह आदर-सत्कार किया। नानक देव भी उसके घर में रूखी-सूखी रोटी खाते थे। जब धनी व्यक्ति को ये बात पता चली तो उसने एक बड़ा भोज आयोजित किया। उसने इलाके के सभी बड़े लोगों के साथ गुरु नानकजी को भी निमंत्रित किया।
.गुरुनानक ने उसका निमंत्रण ठुकरा दिया। ये सुनकर धनी व्यक्ति क्रोधित हो गया। उसने अपने सेवकों को गुरुनानक को अपने यहां लाने का आदेश दिया। जब उसके सेवक नानकदेव को उसके महल ले कर आए तो धनी व्यक्ति ने कहा कि गुरुजी मैंने आपके ठहरने का बहुत बढ़िया इंतजाम किया था। कई सारे स्वादिष्ट व्यंजन भी बनवाए, फिर भी आप उस गरीब के यहां सूखी रोटी खा रहे हैं, ऐसा क्यों?
.गुरुदेव ने कहा कि मैं तुम्हारा भोजन नहीं खा सकता, क्योंकि तुमने गलत तरीके से कमाई की है। जबकि उस गरीब की रोटी उसकी ईमानदारी और मेहनत की कमाई है। गुरुजी की ये बात सुनकर धनी व्यक्ति बहुत क्रोधित हो गया। गुरुजी से इसका सबूत देने को कहा। गुरुजी ने गरीब के घर से रोटी का एक टुकड़ा मंगवाया।
.धनी व्यक्ति के यहां क्षेत्र कई लोग उपस्थित थे। उनके सामने गुरुजी ने एक हाथ में गरीब की सूखी रोटी और दूसरे हाथ में धनी व्यक्ति की रोटी उठाई। गुरुनानक ने दोनों रोटियों को हाथों में लेकर जोर से दबाया। गरीब की रोटी से दूध और धनी व्यक्ति की रोटी से खून टपकने लगा।
.धनी व्यक्ति अपने दुष्कर्मों का सबूत देख नानकदेव के चरणो में गिर गया। गुरुजी ने उसे गलत तरीके से कमाई हुई सारी धन-दौलत गरीबों में बांटने को कहा। ईमानदार बनने की सलाह दी। धनी व्यक्ति ने गुरुनानक की बात मान ली।