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लोहा मंदी की चपेट में है,स्टील सेक्टर का उत्पादन करीब पांच फीसद गिरा…

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रायपुर. कोयला, लोहा, सीमेंट और बिजली छत्तीसगढ़ के लिए धन कुबेर कहे जा सकते हैं, क्योंकि राज्य को कुल राजस्व का करीब 60 फीसद से अधिक हिस्सा इन्हीं चारों सेक्टरों से आता है। लेकिन इस वक्त चारों सेक्टर मंदी की मार झेल रहे हैं। राज्य को सर्वाधिक राजस्व देने वाला काला सोना (कोयला) का उत्पादन बारिश की वजह से प्रभावित हुआ है। लोहा मंदी की चपेट में है। स्टील सेक्टर का उत्पादन करीब पांच फीसद गिरा है। पावर सेक्टर भी राष्ट्रीय स्तर पर बिजली की मांग में आई कमी से प्रभावित है तो सीमेंट उद्योग किसी तरह संभलने की कोशिश कर रहा है। सीमेंट की मांग बढ़ने की उम्मीद में उत्पादकों ने उत्पादन फिलहाल नहीं घटाया है। राज्य के यह चारों सेक्टर देश के उन आठ प्रमुख उद्योगों में शामिल हैं जिनका राष्ट्रीय स्तर पर सितंबर में 5.2 फीसद उत्पादन घटा है।

गुरुवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2018 में बुनियादी उद्योगों का उत्पादन 4.3 प्रतिशत बढ़ा था। इस साल सितंबर 2019 में यह सूचकांक 120.6 पर पहुंच गया है, जो कि सितंबर 2018 की तुलना में 5.2 फीसदी कम है।

कोयला : राज्य के राजस्व का 48 फीसद हिस्सा कोयला से आता है। यहां देश का 18.15 फीसद कोयला भंडार है। देश को 21 फीसदी कोयला की आपूर्ति छत्तीसगढ़ करता है। इस मामले में राज्य देश में दूसरे स्थान पर है।

लोहा : राज्य का 26 फीसद से अधिक खजाना लोहा ही भरता है। देश का करीब 20 फीसद लौह अयस्क भंडार यहीं है। देश का 17 फीसद लोहे का उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है। लोहा उत्पादन के मामले में भी राज्य देश में दूसरे स्थान पर है।

सीमेंट : देश का करीब पांच फीसद चूनापत्थर का भंडार छत्तीसगढ़ में हैं। राज्य में फिलहाल एक दर्जन से अधिक बड़े सीमेंट संयंत्र हैं जो देश की करीब 20 फीसद जस्र्रत पूरी करते हैं। सीमेंट उद्योगों से भी राज्य को बड़ा राजस्व प्राप्त होता है।

बिजली : छत्तीसगढ़ को देश का पॉवर हब कहा जाता है। यहां सरकारी और निजी सेक्टर मिलाकर करीब 23 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है। राज्य की सरकारी बिजली कंपनी देश की उन चुनिंदा बिजली कंपनियों में शामिल है जो मुनाफे में रहती हैं।

कोल इंडिया में टारगेट से 61 मिलियन टन कम कोयला उत्पादन

वित्तीय वर्ष के बीते सात माह में कोल इंडिया ने 341 मिलियन टन लक्ष्य की तुलना में 280 मिलियन टन उत्पादन किया है। तेज बारिश की वजह से नार्थ कोलफिल्ड लिमिटेड (एनसीएल) को छोड़कर शेष सात कंपनी अपने टारगेट से काफी पीछे रहीं। उपक्रमों को 362 एमटी कोयला आपूर्ति किया जाना था, लेकिन 316 एमटी ही कोयला आपूर्ति किया जा सका। यानी कोयले की डिमांड के अनुरूप आपूर्ति नहीं कर सकी। इसका असर पावर प्लांटों में भी पड़ा है। कोयला कम मिलने के कारण पिछले दो महीने के अंदर तेजी से उत्पादन गिरा है। मालगाड़ी में लदान कम होने से रेलवे के राजस्व में भी कमी आई है। एसईसीएल को चालू वित्तीय वर्ष में 170 एमटी कोयला उत्पादन करना है। अब पांच माह का समय शेष बचा है, कंपनी के समक्ष 100.4 मिलियन टन कोयला उत्पादन करना किसी चुनौती से कम नहीं है। कोल इंडिया में उत्पादन में अग्रणी एसईसीएल कंपनी भी मासिक लक्ष्य हासिल करने संघर्ष कर रही है। कंपनियों की सात माह की उत्पादन स्थिति भी स्पष्ट हो गई।

एसईसीएल में सिर्फ अक्टूबर माह में आठ एमटी उत्पादन हुआ और अप्रैल से अक्टूबर तक सात माह में कंपनी ने 69.60 एमटी कोयला उत्पादन किया, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में कंपनी ने सात माह में लगभग 75 एमटी कोयला उत्पादन किया था। एसईसीएल में गेवरा, कुसमुंडा, दीपका जैसी बड़ी ओपन कास्ट खदान हैं। बारिश के दौरान ओपन कास्ट खदान में भारी वाहन का परिचालन प्रभावित होने से उत्पादन में गिरावट आई। खास तौर पर दीपका खदान में पानी भरने से उत्पादन ठप रहा और अभी तक पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं हो रहा। वहीं गेवरा खदान में भी प्रतिदिन कोयला उत्पादन कम हो रहा है। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि सीआइएल को 31 मार्च 2020 तक 660 मिलियन टन कोयला उत्पादन करना है। इस टारगेट को हासिल करने पांच माह के दौरान 379.47 एमटी कोयला उत्पादन की चुनौती रहेगी।

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