सुपेबेड़ा. सुपेबेड़ा में मंगलवार को देर शाम अकालू मसरा (71) की किडनी बीमारी के कारण मौत हो गई। चार साल से अकालू मसरा किडनी बीमारी से ग्रसित था। परिजनों ने किसी तरह उसका ओड़िशा और अन्य जगह पर इलाज भी कराया मगर आखिरकार अकालू की आज सांसे थम गईं। इसके साथ ही अब इस क्षेत्र में 71 लोगों की मौत हो चुकी है। सुपेबेड़ा गांव में कुछ दिन पहले ही पुंरधर पुरैना की भी किडनी की बीमारी से मौत हो गई थी। कई मृतक परिवारों के कई सदस्यों को इस बीमारी ने अपने चपेट में ले लिया है।
करीब 200 ग्रामीण किडनी बीमारी से ग्रसित हैं, जो आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम, ओडिशा सहित अन्य जगह पर हजारों लाखों रुपए खर्च कर अपना इलाज करा रहे हैं। सरकारी स्वास्थ्य सुविधा पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। सरकार भी इसके लिए किसी प्रकार की पहल नहीं कर रही है। इसके चलते हर सप्ताह किसी ना किसी पीड़ित को अपनी जिंदगी को मौत की हवाले कर रहा है।
जिम्मेदार से पल्ला झाड़ रहे अधिकारी– ग्रामीण गांव की बदनामी ना हो उसके लिए खुलकर मौत का कारण को सामने नहीं ला रहे हैं। इसका फायदा उठाते हुए जिम्मेदार अधिकारी जिम्मेदारी से बचने के लिए अपना अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। जब कभी किसी ग्रामीण की मौत होती है तो वे कभी मौत की वजह उसकी उम्र बताते हैं और कभी उसकी बीमारी। ऐसे में आखिर कैसे यहां के हालात सुधरेंगे जब हम समस्या को स्वीकार करने तैयार ही न हो।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी नाकाम– आठ महीने के दौरान स्वास्थ सचिव निहारिका बारीक पीएचई मंत्री रुद्रगुरु के साथ संचय दूसरी बार सुपेबेड़ा गांव पहुंची तो से मुलाकात किया और सरकारी इलाज, कराने के हाथ जोड़कर आग्रह, साथ ही खाना-पीना, रुकने सही तमाम सुविधा के साथ इलाज कराने की बात कही रही लेकिन अब तक मंत्री के हाथ असफल ही लगा है क्योंकि 200 में से एक भी पीड़ित ने रायपुर स्थित अस्पताल पर भरोसा नहीं कर रहे हैं जबकि ऐसे कई ग्रामीण हैं। इनका डायलिसिस तक नौबत बताई जाती है। बावजूद इसके सरकारी इलाज से साफ इंकार कर रहे हैं। प्रशासन और पीड़ित के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा है, जिसका खामियाजा जिंदगी से झुकाना पढ़ रहा है.