नवरात्रि के 9 दिनों में अष्टमी का विशेष महत्व है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है। बंगाल में महाष्टमी के दिन का खास महत्व होता है। महाष्टमी का प्रारंभ होम और संधिपूजा से किया जाता है। मां दुर्गा के समक्ष 108 दीप प्रज्वलित करते हैं और फिर मंत्रोच्चार करके संधिक्षण में देवी मां की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसके अलावा दुर्गाष्टमी को सभी लोग मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। खासतौर पर बंगाल में महाष्टमी के दिन मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करने को महत्व दिया जाता है।
वहीं, अन्य जगहों पर दुर्गाष्टमी के दिन विधि विधान से महागौरी की पूजा की जाती है। महागौरी के पूजन से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। सुख, समद्धि के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माता महागौरी की कृपा से भक्तों के असंभव लगने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर ने नवरात्रि के महानवमी और दुर्गाष्टमी की पूजा पर चर्चा की थी। इसका उल्लेख पुराणों में है। दुर्गाष्टमी और महानवमी की पूजा सभी युगों में होती रही है।
आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा देव, नर, मुनि, गंधर्व, असुर सभी करते हैं। उनके कई स्वरूपों की पूजा की जाती है। वह काली, माया, दुर्गा, चामुण्डा, कात्यायिनी, जगदम्बा, भवानी, हिंगलाज माता, कामाख्या देवी आदि के नामों से प्रसिद्ध हैं।
माता को चुनरी अर्पित करें
दुर्गाष्टमी के दिन महिलाएं माता को चुनरी अर्पित करती हैं। महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और अपने पति की मंगलकामना के लिए ऐसा करती हैं।
कन्या पूजन
नवरात्रि में दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विधान है। इस दिन 9 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये कन्याएं साक्षात् मां दुर्गा का स्वरूप होती हैं। कन्या पूजा के बाद उनको कुछ दक्षिणा भी देने का रिवाज है।