लोकसभा चुनाव 2019 : सरकारी कर्मचारियों पर टिकी दिग्विजय सिंह की तकदीर
मध्यप्रदेश में पिछले पंद्रह सालों से हर चुनाव के समय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कर्मचारी विरोधी छवि वोटरों के बीच गढ़ने वाली बीजेपी को अब उसी के गढ़ में वहीं दिग्विजय सिंह खुलकर चुनौती दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश की सियासत के जानकार कहते हैं कि अगर दिग्विजय ने अपने मुख्यमंत्री के दूसरे कार्यकाल के आखिरी दिनों में अपने दलित एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाते हुए प्रमोशन में आरक्षण जैसे कुछ फैसले नहीं लिए होते तो सूबे का सियासी इतिहास कुछ और ही होता।
सियासत के जानकार कहते हैं कि 2003 में दिग्विजय सरकार को सत्ता से बाहर करने में कर्मचारियों को बहुत बड़ी भूमिका थी,राजनीतिक विश्लेषकों का मानना हैं कि उस वक्त दस साल के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की किस्मत का फैसला उनकी कर्मचारियों को लेकर किए गए फैसलों और बयानों ने चुनाव से पहले ही कर दिया था।
दिग्विजय सिंह ने भी चुनाव के बाद इस बात को माना भी था कि उनकी सरकार को कर्मचारियों की नाराजगी भारी पड़ गई थी। 2003 में कर्मचारियों की नाराजगी का फायदा वैसे तो बीजेपी ने पूरे प्रदेश में उठाया लेकिन कर्मचारियों की नाराजगी का नुकसान कांग्रेस को सबसे अधिक भोपाल में उठाना पड़ा। पिछले पंद्रह साल से कांग्रेस विधानसभा में भोपाल में सिर्फ एक सीट पर ही सिमटीं रही।
करीब 16 साल पहले दिग्विजय सिंह की किस्मत का फैसला करने वाले कर्मचारी और अधिकारी एक बार फिर दिग्विजय सिंह के सियासी भविष्य को तय करने में अहम रोल निभा सकते हैं। लोकसभा चुनाव में भोपाल से किस्मत अजमा रहे दिग्विजय सिंह के लिए कर्मचारियों के वोट बैंक को साधना बड़ी चुनौती होगी। भोपाल लोकसभा सीट पर कुल वोटरों की संख्या 21 लाख से अधिक है जिसमें कर्मचारी और उनके परिवार के वोटों की संख्या करीब चार लाख के आसपास है। इस बड़े वोट बैंक में इसमें राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के साथ-साथ पेंशनर्स भी शामिल है।
ऐसे में कर्मचारियों और उनके परिवार को ये वोट चुनाव में जिस तरफ जाएगा उस उम्मीदवार के चुनाव जीतने की संभावना उतनी ही अधिक हो जाएगी। भोपाल लोकसभा सीट अगर पिछले तीस साल से बीजेपी का अभेद दुर्ग बनी हुई है तो इसमें इन कर्मचारी वोटबैंक की बड़ी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। कर्मचारियों को खुश होना या नाराज होना राजनीतिक दल के प्रत्याशी की किस्मत का फैसला कर सकता है।
कमर्चारियों के वोट बैंक की ताकत को बताते हुए कर्मचारी नेता उमाशंकर तिवारी कहते हैं कि जो भी कर्मचारियों के हितों की बात करेगा चुनाव में कर्मचारी और उसके परिवार को वोट उस पार्टी को मिलेगा।
वहीं दिग्विजय सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने के बाद वेबदुनिया ने जब कर्मचारियों की बीच जाकर उनका मन टटोला तो कर्मचारी कुछ भी साफ-साफ कहने से बचते नजर आए। कुछ कर्मचारियों ने कहा कि पिछले पंद्रह सालों में बहुत कुछ बदल गया है लेकिन वहीं कुछ कर्मचारियों ने कहा कि दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए दिए गए कुछ बयान आज भी उनके जेहन में ताजा है। ऐसे में कर्मचारियों का रुख क्या होगा इस पर अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगा।
एक ओर कर्मचारी चुप है तो दूसरी ओर दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने दलित एजेंडे को पूरा करने के लिए जिस पदोन्नति में आरक्षण कानून को लाया था उसका जिन्न भी समाने निकल कर आ गया है। इस कानून का विरोध कर अपना सियासी अस्तित्व बनाने वाली सपाक्स पार्टी ने दिग्विजय सिंह का भोपाल में विरोध करने का ऐलान कर दिया है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के लिए राहत की बड़ी बात ये हैं कि एक समय उनसे नाराज रहने वाला कर्मचारी वर्ग अब शिवराज के माई के लाल बयान से उतना ही नाराज हैं। शायद इसी के चलते भोपाल में कांग्रेस कर्मचारी वोटरों की बहुल्यता वाली जो दो विधानसभा सीट पिछले 15 सालों से हार रही थी उस पर इस बार जीत हासिल की है। कर्मचारियों के अधिक वोटों वाली भोपाल की दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पीसी शर्मा और भोपाल मध्य सीट से कांग्रेस आरिफ मसूद विधायक चुने गए है। जिसमें पीसी शर्मा कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री होने के साथ साथ दिग्विजय सिंह के खास सर्मथक हैं।