बता दें कि, आदेश में सर्वोच्च न्यायालय का उदाहरण देते हुए लिखा हुआ है कि, पूर्व की स्थिति में तालाब को लाया जाये। सोचने वाली बात है कि, तालाब व निस्तार को नजूल कैसे बनाया गया ? और नजूल के बाद उसे स्वामीत्व कैसे दिया गया ? वहीं सन् 1947-48 के रिकाॅर्ड में बाईसागर तालाब व निस्तार की भूमि दर्ज है। बावजूद पद का दूरूपयोग करके अनावेदक को सहयोग दिया गया, क्योंकि अनावेदक एक फर्जी कार्यो में लिप्त होने का छत्तीसगढ़ कृषि विभाग प्रमाणित दे सकता है। राजस्व विभाग की तानाशाही व पद का दूरूपयोग करके तालाब में अवैध निर्माण कार्य जारी है। और राजस्व विभाग में किस बलबुते पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है ? सरगुजा आयुक्त के आदेश की प्रमाणित काॅपी संलग्न है।
बैकुण्ठपुर/कोरिया : राजस्व विभाग सरगुजा आयुक्त के आदेशों की उड़ा रहा धज्जियां ?…………
मुख्यालय बैकुण्ठपुर में बाईसागर तालाब व निस्तार को लेकर लगभग 20-25 सालों से आवेदक शिकायत करते आ रहा है। उस शिकायत को वर्तमान कलेक्टर महोदया ने संज्ञान में लिया और जांच के आदेश भी दिये गये, परंतु नीचे बैठे आर.आई, पटवारी और तहसीलदार गुमराह करते रहे। गुमराह को देखे-देखते आवेदक थक चुका। तो सरगुजा आयुक्त के शरण में चला गया। सरगुजा आयुक्त ने निस्तार व तालाब को लेकर स्थगन आदेश का आदेश दिया। उस आदेश को महीनों बीत चुके, पर तहसीलदार महोदया ने उस निस्तार व तालाब के भूमि का कोई भी किसी प्रकार का उल्लेख नहीं दिया। बताया जाता है कि, अनावेदक के राजनितिक व पैसे के बल पर गुमराह करके एसडीएम को प्रतिवेदन दे दिया गया। उस प्रतिवेदन के आधार पर अनावेदक एसडीएम के पास रोज दो-चार घण्टे बैठकर श्रीमान् कमिश्नर के आदेश को खारिज करा दिया। जबकि सरगुजा कमिश्नर ने निस्तार व तालाब के भूमि का पूरा ब्यौरा दिया था। बावजूद उसको भी नजर-अंदाज किया गया। क्योंकि एसडीएम, तहसीलदार, आरआई (शिवकुमार सिंह) और नायब तहसीलदार द्वारा आवेदक के ऊपर दबाव बनाकर अनावेदक के फेवर में गलत जानकारी देकर गुमराह किया गया।