Home कोरिया भगवान परशुराम : जानिए उनकी अद्भुत और अजय भरी कहानी………….

भगवान परशुराम : जानिए उनकी अद्भुत और अजय भरी कहानी………….

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भगवान परशुराम का जन्म

भगवान परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और रेणुका के घर हुआ था। उनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था, जो अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि जमदग्नि एक महान ऋषि थे और रेणुका एक धार्मिक और पतिव्रता महिला थीं। भगवान परशुराम का जन्म एक आश्चर्यजनक घटना के साथ हुआ था, जब उनकी माता रेणुका ने एक कमल के फूल से भगवान विष्णु की पूजा की थी और भगवान विष्णु ने उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया था। भगवान परशुराम का जन्म एक अद्भुत घटना के साथ हुआ था और उनका जीवन भी अद्भुत और अजय भरा था।

भगवान परशुराम का जन्म स्थान

भगवान परशुराम का जन्म स्थान महर्षि जमदग्नि का आश्रम था, जो वर्तमान समय में महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरि जिले में स्थित है। इस स्थान को “जमदग्नि आश्रम” या “परशुराम भूमि” के नाम से जाना जाता है। यह आश्रम समुद्र के किनारे स्थित है और यहाँ पर भगवान परशुराम का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है, जो उनके जन्म स्थान के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में भगवान परशुराम की एक प्राचीन मूर्ति स्थापित है, जो उनके जन्म स्थान की याद में बनाई गई है।

भगवान परशुराम: भगवान विष्णु के छठे अवतार

भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में हिंदू धर्म में विश्वास किया जाता है, जिनके अनुसार भगवान विष्णु ने विभिन्न युगों में विभिन्न रूपों में अवतार लिया था।

भगवान परशुराम का अवतार सत्य युग और त्रेता युग के बीच में हुआ था, जब पृथ्वी पर अधर्म और अन्याय बढ़ रहा था। भगवान परशुराम ने अपने अवतार में क्षत्रियों को नष्ट करने और धर्म की स्थापना करने का काम किया था।

भगवान परशुराम के अवतार के बारे में विभिन्न कथाएं और कारण बताए जाते हैं, लेकिन मुख्य रूप से यह माना जाता है कि भगवान परशुराम ने अपने अवतार में धर्म की स्थापना करने और अधर्म को नष्ट करने का काम किया था।

भगवान परशुराम के गुरु

भगवान परशुराम के गुरु महर्षि शिव थे। महर्षि शिव ने भगवान परशुराम को युद्ध कला, धनुर्विद्या और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा दी थी। भगवान परशुराम ने महर्षि शिव से कई वर्षों तक शिक्षा प्राप्त की और उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में जानने में मदद मिली। महर्षि शिव की शिक्षा ने भगवान परशुराम को एक महान योद्धा और आध्यात्मिक नेता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भगवान परशुराम के शिष्य

भगवान परशुराम के कई शिष्य थे, लेकिन उनके कुछ प्रमुख शिष्यों के नाम इस प्रकार हैं:

1. भीष्म: महाभारत के एक प्रमुख पात्र भीष्म भगवान परशुराम के शिष्य थे।
2. कर्ण: महाभारत के एक अन्य प्रमुख पात्र कर्ण भी भगवान परशुराम के शिष्य थे।
3. द्रोणाचार्य: महाभारत के एक प्रमुख पात्र द्रोणाचार्य भी भगवान परशुराम के शिष्य थे।
4. अक्रूर: भगवान परशुराम के एक अन्य शिष्य अक्रूर थे, जो एक महान योद्धा और आध्यात्मिक नेता थे।

इन शिष्यों ने भगवान परशुराम से युद्ध कला, धनुर्विद्या और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा प्राप्त की और उन्होंने अपने जीवन में इन शिक्षाओं का प्रयोग किया।

भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का सर क्यों काट दिया?

भगवान परशुराम की माता रेणुका एक धार्मिक और पतिव्रता महिला थीं। एक दिन, जब महर्षि जमदग्नि अपने आश्रम में तपस्या कर रहे थे, रेणुका नदी में स्नान करने गईं। वहाँ उन्हें एक गंधर्व दिखा, जो अपनी पत्नी के साथ प्रेमालाप कर रहा था। रेणुका को यह देखकर कुछ पल के लिए अपने पति की तपस्या भूल गई और वह गंधर्व की ओर आकर्षित हो गईं।

जब रेणुका आश्रम लौटीं, तो महर्षि जमदग्नि ने उनके मन की बात जान ली और उन्हें शाप दिया कि वह मर जाएंगी। रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम से कहा कि वह अपने पिता के शाप को पूरा करें और उनका सर काट दें। परशुराम ने अपनी माता की आज्ञा का पालन किया और उनका सर काट दिया।

लेकिन, जब परशुराम ने अपने पिता से कहा कि उन्होंने उनकी आज्ञा का पालन किया है, तो महर्षि जमदग्नि ने उन्हें वरदान दिया कि वह अपनी माता को जीवित कर सकते हैं। परशुराम ने अपनी माता को जीवित किया और वह फिर से जीवित हो गईं।

चारों युगों में भगवान परशुराम का उल्लेख

भगवान परशुराम का उल्लेख हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में चारों युगों में मिलता है:

सत्य युग
सत्य युग में भगवान परशुराम का उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन उनके पिता महर्षि जमदग्नि का उल्लेख मिलता है।

त्रेता युग
त्रेता युग में भगवान परशुराम का उल्लेख रामायण में मिलता है। रामायण में भगवान परशुराम को भगवान राम के समक्ष एक शक्तिशाली और महान योद्धा के रूप में वर्णित किया गया है।

द्वापर युग
द्वापर युग में भगवान परशुराम का उल्लेख महाभारत में मिलता है। महाभारत में भगवान परशुराम को एक महान योद्धा और आध्यात्मिक नेता के रूप में वर्णित किया गया है।

कलि युग
कलि युग में भगवान परशुराम का उल्लेख पुराणों और अन्य हिंदू ग्रंथों में मिलता है। इन ग्रंथों में भगवान परशुराम को एक महान योद्धा और आध्यात्मिक नेता के रूप में वर्णित किया गया है।

भगवान परशुराम चिरंजीवी है:

हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को एक चिरंजीवी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वह अमर हैं और उनकी आयु कभी समाप्त नहीं होगी। भगवान परशुराम के चिरंजीवी होने का उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है, जिनमें से कुछ प्रमुख ग्रंथ हैं:

– महाभारत: महाभारत में भगवान परशुराम को एक चिरंजीवी के रूप में वर्णित किया गया है।
– पुराण: पुराणों में भगवान परशुराम के चिरंजीवी होने का उल्लेख मिलता है।
– भगवद् गीता: भगवद् गीता में भगवान परशुराम को एक चिरंजीवी के रूप में वर्णित किया गया है।

भगवान परशुराम के चिरंजीवी होने के पीछे कई कथाएं और कारण बताए जाते हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा यह है कि भगवान परशुराम ने अपने पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या का बदला लेने के लिए 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया था, और इसके बाद उन्हें अमरत्व का वरदान मिला था।

छत्तीसगढ़ के जिला कोरिया बैकुण्ठपुर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर एक सवाल ? है कि, दिनांक 30/01/2025 से 03/02/2025 का पम्पलेट में जो लिखा है ब्राम्हण संस्कार सेवा समिति को पढ़कर लोगों में चर्चाओं का विषय बन गया है।

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