सातवें दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कालरात्रि। इनके शरीर का रंग बिल्कुल काला है। ये दिखने में अति भयावह प्रतीत होती हैं। उनके केश अस्त व्यस्त हैं। गले में बिजली के सम्मान कौंधती माला है। चेहरे पर निरन्तर ज्वाला बरसाती तीन आंखें हैं। प्रत्येक श्वास विद्युत की लपटों के सम्मान है। दाहिना ऊपरवाला हाथ वर मुद्रा में और नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। दूसरे हाथ में ऊपर नीचे लोहे का कांटा और उनके बाएं हाथ में एक खड़ग है। उनका वाहन गर्दभ यानी गधा है, जो सबसे अधिक मेहनती और निडर प्राणी है।
माता कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है। माता कालरात्रि की विधिपूर्वक पूजा करने और व्रत रखने से माता अपने भक्तों की सभी बुरी शक्तियों और काल से रक्षा करती हैं, अर्थात माता की पूजा करने से भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। मां के इस स्वरूप से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं इसलिए तन्त्र मंत्र करने वाले लोग विशेष रूप से मां कालरात्रि की उपासना करते हैं।
मां कालरात्रि पूजा मंत्र
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
राक्षसों और दुष्ट प्राणियों का संहार करने वाली मां कालरात्रि की सच्चे मन से पूजा करने से सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं और जीवन और परिवार में सुख-शांति का वास होता है। शास्त्र और पुराण कहते हैं कि मां कालरात्रि की पूजा और व्रत करने से सभी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं और आरोग्य की प्राप्ति होती है। माँ कालरात्रि अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और उनकी शक्ति और आयु में वृद्धि करती हैं। माता कालरात्रि की पूजा रात्रि में भी की जाती है। यदि आप रात्रि पूजा के दौरान “ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चै नमः” मंत्र का सवा लाख बार जाप करते हैं तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
माता कालरात्रि की कथा
शुंभ निशुंभ और रक्तबीज नाम के असुरों ने अपने अत्याचारों से पृथ्वी पर हाहाकार मचा दी थी। उनसे परेशान होकर सभी देवी देवता भोलेनाथ के पास पहुंचकर उनसे रक्षा की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। मां पार्वती ने देवी दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ निशुंभ राक्षसों का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का वध किया तो उसके रक्त से लाखों रक्तबीज पैदा हो गये। यह देखकर मां दुर्गा बहुत क्रोधित हो गईं। मां का चेहरा गुस्से से काला पड़ गया। इसी स्वरूप से देवी कालरात्रि का प्रादुर्भाव हुआ। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज समेत सभी दैत्यों का वध कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया।
मां कालरात्रि का भोग
महा सप्तमी के दिन मां कालरात्रि को गुड़ या उससे से बनी चीजें और मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इन चीजों का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
मां कालरात्रि पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
- मां को रोली कुमकुम लगाएं।
- मां को मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें।
- मां कालरात्रि को गुड़हल के फूल चढ़ाएं और गुड़ का भोग लगाएं।
- इसके बाद कपूर या दीपक से माता की आरती उतारें।
- सुबह शाम आरती के बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं और मां दुर्गा के मंत्रों का भी जप करें।
मां कालरात्रि का मंत्र
ॐ कालरात्र्यै नम:।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते॥
ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।
मां कालरात्रि आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली ।
काल के मुंह से बचाने वाली ॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।
महाचंडी तेरा अवतार ॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा ।
महाकाली है तेरा पसारा ॥
खडग खप्पर रखने वाली ।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।
सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥
सभी देवता सब नर-नारी ।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी ।
ना कोई गम ना संकट भारी ॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें ।
महाकाली मां जिसे बचाबे ॥
तू भी भक्त प्रेम से कह ।
कालरात्रि मां तेरी जय ॥