नरसिंहपुर : कृषि विभाग नरसिंहपुर के अधिकारियों व कर्मचारियों और उनकी टीम ने जिले के विभिन्न ग्रामों का भ्रमण कर फसलों का जायजा लिया। निरीक्षण के दौरान विभिन्न फसलों में रोग एवं कीट- व्याधि का निरीक्षण कर किसानों को फसल बचाने संबंधी समसमायिक सलाह दी है। निरीक्षण के दौरान उप संचालक कृषि श्री उमेश कुमार कटहरे, अनुविभागीय कृषि अधिकारी श्रीमती शिल्पी नेमा, श्री एसके सोनी वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी करेली, अन्य अधिकारी व कर्मचारी और संबंधित कृषक मौजूद थे।
निरीक्षण के दौरान कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन एवं उड़द की फसल में पीला मोजैक वायरस रोग का प्रकोप देखा गया। किसानों को बताया गया कि यह वायरस रोग पौधों के लिए बहुत खतरनाक होता है, जिसका कोई उपचार नहीं है। यह रोग वर्षा में ज्यादा अंतराल होने पर बहुत तेजी से फैलता है। इसकी रोकथाम के लिए सभी किसानों के सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता होती है। किसानों को अपने- अपने खेतों का भ्रमण कर इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में ही पीला मोजेक रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर खेत से अलग कर दें। साथ ही स्वस्थ्य पौधें में रोग फैलाने वाली सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए किसान अपने सोयाबीन एवं उड़द की फसल में सिस्टेमेटिक कीटनाशक का छिड़काव करें।
किसानों को बताया गया कि मिश्रित रसायन जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत, ईसी 150 मिली दवा या इमीडाक्लोप्रिड 30.5 प्रतिशत एससी 50 मिली या थायोमेथाक्जाम 25 प्रतिशत, डब्ल्यूजी 80 ग्राम दवाई 150 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। यदि सफेद मक्खी के साथ- साथ पत्ती खाने वाले कीड़े अथवा इल्लियों का प्रकोप भी हो, तो बाजार मे उपलब्ध पूर्व मिश्रित दवा थायोमेथाक्जाम लैम्बडा सायलोथ्रिन 50 एमएल या बेटासायफ्लूथ्रिन के साथ इमीडाक्लोप्रिड 140 एमएल दवा को 150 लीटर पानी मे घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। इससे सफेद मक्खी के साथ- साथ पत्ती खाने वाले अन्य कीटों का एक साथ नियंत्रण हो सकेगा।
किसानों को बताया गया कि कभी- कभी फसल अधिक घनी होने के कारण या फसल कैनोपी अधिक होने के कारण पौधों की निचली सतह या पत्तियों के नीचे छुपकर या छिड़काव करते समय कुछ सफेद मक्खी अपने आप को बचा लेती हैं। इस रोग के रोकथाम के लिए किसानों ने सामूहिक प्रयास नहीं किया तो, पास में लगे खेतों के रोगग्रस्त पौधें से रस चूसकर सफेद मक्खी वहां से उड़कर स्वस्थ्य खेत में भी रोग का फैलाव कर देगी। किसान अपनी फसल पर दवा का छिड़काव भी किया है, तो रस चूसते ही वह मर जाएगी, किन्तु मरने से पहले वह रोग तो स्वस्थ्य पौधों में प्रवाहित कर देगी। यहीं कारण है लम्बे समय तक पानी न गिरने के कारण रोग एक बार फैलने के बाद इसका नियंत्रण बहुत कठिन होता है।
अतः रोग की प्रारंभिक अवस्था जब खेत में 4- 6 पौधों में ही रोग के लक्षण दिखाई दें, तभी सामूहिक रूप से सभी किसानों को रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर रस चूसक कीड़ों की रोकथाम के लिए उपरोक्त सिस्टेमिक कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव करना चाहिए और 12- 15 दिन बाद दवा बदलकर उपरोक्त दवा का छिड़काव दोहराना चाहिए। यदि लगातार वर्षा होती रहे तो इसका नेचुरल रुप से नियंत्रण होता रहता है।
अत्याधिक वर्षा होने की स्थिति में सोयाबीन फसल की सुरक्षा के लिए किसानों को समसामयिक सलाह दी है। किसानों को बताया गया कि खेतों में पानी निकासी की अविलम्ब व्यवस्था करें। खेतों का प्रतिदिवस निरीक्षण करें, यदि कीट बीमारियों की समस्या आती है, तो दवा छिड़काव की व्यवस्था करें। इस समय पीला मोजेक नामक बीमारी यदि दिखाई दे तो, एक दो पौधों को तुरंत उखाड़ कर नष्ट करें। खेत के चारों ओर फेरोमेन ट्रेप लगाने की व्यवस्था करें। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए चिपचिपी पीली पट्टी लगायें एवं नियंत्रण के लिए अनुशंसित दवाओं का प्रयोग करें। यदि तना मक्खी व सफेद मक्खी का प्रकोप दिखाई दे तो, पूर्व में मिश्रित कीटनाशक दवा थायोमेथाक्जाम 12.6 प्रतिशत, लेम्डासायहेलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत, जेडसी 150 मिली प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें। इल्लियों के नियंत्रण के लिए इंडावसाकार्ब 15.8 एससी 333 मिली प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें। चक्रमृंग व इल्लियों के नियंत्रण के लिए क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 एससी 150 मिली हेक्टर की दर से छिड़काव करें।