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कमलनाथ सरकार के खिलाफ लोगों में…….

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लोकसभा चुनाव से पहले कमलनाथ सरकार के खिलाफ बीजेपी की तख्तापलट पॉलिटिक्स!

देश में इस समय एक बार फिर तख्तापलट पॉलिटिक्स को लेकर सियासत गर्मा गई है। कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन की सरकार का तख्तापलट करने के लिए एक बार फिर सियासी दांवपेंच देखने को मिल रहे हैं।

कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने तीन विधायकों के लापता होने की बात कह कर बीजेपी पर सरकार को गिराने के लिए ऑपरेशन लोट्स चलाने का आरोप लगा कर सूबे की सियासत में सियासी भूचाल ला दिया है। ऐसे में एक बार फिर मध्यप्रदेश की सियासत में बड़ा सवाल उठ खड़ा हो गया है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश की सियासत में भी कर्नाटक जैसी कोई तख्तापलट पॉलिटिक्स देखने को मिलेगी?
इस सवाल के उठने के पीछे एक नहीं कई कारण है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को शपथ लिए अभी एक महीने भी नहीं हुआ है लेकिन सरकार कितने दिन चलेगी इसको लेकर बीजेपी के बड़े नेताओं ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जिस दिन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है उसके बाद वो बीजेपी नेताओं के निशाने पर है। बीजेपी का हर बड़ा नेता कमलनाथ सरकार के भविष्य पर सवाल उठा चुका है।
बातें चाहें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हो या बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की, या नए नए बने नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की। सभी ने कमलनाथ सरकार को अल्पमत सरकार बताते हुए उसके भविष्य पर सवाल उठा दिया है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी कमलनाथ सरकार के खिलाफ लोगों में अस्थिरता का माहौल बनाकर तख्तापलट पॉलिटिक्स कर रही है? लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए कोई जोड़ तोड़ कर सकती है। ऐसा ही कुछ इशारा बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पिछले दिनों कार्यकर्ताओं के सामने ये बयान देकर कर ही चुके है कि जिस दिन उपर से इशारा से मिला कमलनाथ सरकार को गिरा देंगे।
इसी बीच सोमवार को सागर पहुंचे नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने मीडिया से बात करते हुए कमलनाथ सरकार को लूली -लंगड़ी
सरकार बताते हुए कहा कि कमलनाथ सरकार कितने दिन चलेगी ये तो ज्योतिष भी नहीं बता सकते।

इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कमलनाथ सरकार को लूली लंगड़ी सरकार बताते हुए उसके भविष्‍य पर सवाल उठा चुके हैं। ऐसे में फिर एक बार वहीं सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के खिलाफ बीजेपी तख्तापलट पॉलिटिक्स करेगी? जैसा कुछ इन दिनों से कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन वाली सरकार को गिराने के लिए होता दिखा रहा है।
विधानसभा सत्र के दौरान कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो विधानसभा परिसर में मीडिया के सामने खुलकर बीजेपी के दो पूर्व मंत्री और एक विधायक पर कांग्रेस विधायकों को पैसा देकर खरीदने का आरोप लगा दिया था। वहीं फरवरी में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान बीजेपी एक बार कमलनाथ सरकार की एकजुटता की अग्निपरीक्षा लेने की तैयारी कर रही है।

नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव पहले ही कह चुके है कि विधानसभा में बीजेपी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी और सदन में हर फाइनेंशियल बिल पर बीजेपी वोटिंग की मांग करेगी। ऐसा कर बीजेपी कांग्रेस सरकार की बहुमत की परीक्षा लेगी। ऐसे में जब लोकसभा चुनाव को लेकर तेजी से सियासी समीकरण बदल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा में गठबंधन हो चुका है और कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल उठ खड़ा होता है कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार जिसके बसपा और सपा ने अपना समर्थन दिया है कि कितने दिनों तक चलेगा। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही कमलनाथ कैबिनेट में सपा विधायक को मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके है। वहीं बसपा के दो विधायक जो विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के दौरान सदन में कमलनाथ सरकार के साथ खड़े दिखाए दिए वो कितने दिन तक सराकार के साथ रहेंगे, ये सवाल भी भविष्य के गर्भ में छिपा है।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ बीजेपी की इस तख्तापलट पॉलिटिक्स को पूरी तरह दरकिनार कर रहे हैं। सदन में अपनी सरकार किसी भी प्रकार से खतरे से बचाने के लिए मुख्यमंत्री जल्द ही अपनी कैबिनेट का विस्तार कर निर्दलीय और सपा और बसपा विधायक को मंत्री बना सकते हैं, जिससे विधानसभा के बजट सत्र में सरकार को अगर किसी भी तरह के फ्लोर टेस्ट से गुजरना पड़े तो कोई खतरा नहीं रहे।

अगर बात करें सदन के अंदर के संख्या बल की तो कांग्रेस के 114 विधायक है और सपा के एक, बीएसपी के दो विधायक और निर्दलीय चार विधायकों का समर्थन कमलनाथ सरकार को है। वहीं मुख्य विपक्षी दल बीजेपी बहुमत के आंकड़ों से कुछ दूरी पर 109 विधायकों के साथ सदन में मौजूद है। ऐसे में देखना होगा कि लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में भी कोई तख्तापलट पॉलिटिक्स धरातल प देखने को मिलती है या सिर्फ सरकार को लेकर सियासी बयानों के तीर चलते रहते हैं।

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