बैकुण्ठपुर मुख्यालय में जगह-जगह सोसायटियों से राशन वितरण की जाती है। जिसमें समूह बनाकर सोसायटियां चलाई जा रही है। देखा जाता है कि, अब सोसायटियों में चना पूरा ही गायब हो चुका है। मिलने वाले चावलों में किड़े लगे हुए होते है।
जानकार सूत्र बताते है कि, समूह वालों के द्वारा उनके काटे में ऐसी कालाकारी हो चुकी है कि, 35 किलो में डेढ़ किलो या दो किलो चावल कम निकलता है। जबकि एक किलो शक्कर में 900 ग्राम शक्कर मिलता है। बताया जाता है कि, इलेक्ट्रीक काटे में जिस हिसाब से सेटिंग करते है उसी हिसाब से काम करता है। जबकि समूह का नियम यह है कि, एक परिवार के दो व्यक्ति नहीं होना चाहिए। परंतु देखने को यही मिलता है कि, बहन-भाई, सास-ससुर, देवर-भाभी और परिवार के अन्य व्यक्ति समूह बनाकर लूट रहे है। बताया जाता है कि, उनको बोलने पर कहा जाता है कि, हमको खाद्य अधिकारी इंस्पेक्टर से लेकर बाबू व उच्च अधिकारी तक को पैसा देना पड़ता है। तो इस खर्चे को कहां से मेंटेन्स करेंगे। अब हर व्यक्ति इसी प्रकार का हेरा-फेरी करेगा। तो छोटी चोरी से ही बड़ी चोरी होती है।
बताया जाता है कि, प्रशासन, खाद्य अधिकारी और एस.डी.एम. का बाबू ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुए है। वहीं लोगों को दो-तीन महीने का चावल दे दिया जाता है तो दो महीने का शक्कर क्यों नहीं दिया जाता ? क्योंकि समूह वाले एवं दूकानदार उस शक्कर को घुमाफिराकर दूकानदार को बेच देते है।
लोगों के द्वारा बताया जाता है कि, आज सोसायटी समूहों के कार्यकर्ता महीने में लगभग दस-बीस हजार रूपये की हेरा-फेरी कर लेते है और शासन द्वारा कमिशन अलग से कमाते है। इससे प्रतीत होता है कि, समूह को महीने में लगभग 25 से 50 हजार का फायदा होता है। वहीं सोसायटियांे में नमक आता है तो उसको भी सोसायटी समूह द्वारा नमक को चिकवा और हरजनों जो कि पशु पालक होते है उनको उच्च दामों में बेच दिया जाता है। जनता को चाहिए कि, प्रशासन इस पर ध्यान दें कि, जो हितग्राही के हक का राशन है उस पर समूह व दूकानदारों द्वारा हेरा-फेरी न हो।