विश्व में भारत की पहचान लोकतांत्रिक देश के रूप में की जाती है। देश के संविधान में अपना जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार हर उस व्यक्ति को मिला है, जो जरूरी अर्हताओं को पूरी करते हों। इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें चुनाव और मतदान की प्रक्रिया से पृथक रखा गया है, ताकि लोकतंत्र के महापर्व को पूरी तरह पारदर्शिता के साथ पूर्ण कराई जा सके। इसमे जाने अंजाने में हुए अपराध के बाद जेलों में निरुद्ध सजायाफ्ता कैदी व हवालाती बंदी भी शामिल हैं, जो लोकतंत्र के हवन में हिस्सा नहीं ले सकते। शायद आपको इस बात की जानकारी न हो कि, किसी कारणवश जेल में निरुद्ध बंदी के मतदान पर पाबंदी लगा दी गई है। यह नियम 1951 के जनप्रतिनिधि अधिनियम में निहित है। इस नियम के चलते कोरबा लोकसभा क्षेत्र में आने वाले पांच जिला और उपजेल के करीब एक हजार कैदियों को मताधिकार से वंचित होना पड़ेगा। वे चाह कर भी मताधिकार का प्रयोग नही कर सकेंगे।
जानकारों की मानें तो जेलों में निरुद्ध विचाराधीन बंदी व कैदियों की मतदान मे सहभागिता संबंधी नियम लागू है। जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 62 (5) के तहत कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक हिरासत में है या फिर सजा काट रहा है। वह मतदान में हिस्सा नहीं ले सकता। कोरबा लोकसभा की बात करें तो जिला जेल कोरबा, जिला जेल पेंड्रा, जिला जेल बैकुंठपुर के अलावा उप जेल कटघोरा व उप जेल महेंद्रगढ़ स्थित हैं। यदि आंकड़ों की बात करें तो जिला जेल कोरबा में 255 बंदी निरूद्ध हैं, जिनमें 16 महिलाएं भी शामिल हैं। वे सभी अपने मताधिकार का प्रयोग नही कर सकेंगे। इस लिहाज से औसतन तीन जिला जेल और दो उपजेल में औसतन एक हजार बंदी व कैदी बंद हैं, जो लोकतंत्र के महापर्व में शामिल नहीं हो सकेंगे।
जिला जेल के जेलर विजय आनंद सिंह ने बताया कि, जेल में निरुद्ध हवालाती और सजायाफ्ता बंदी के वोटिंग की अधिकार खत्म हो जाती है। यह प्रावधान जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 62 (5) में निहित है।