पत्रकार सुरक्षा अधिनियम का सुझााव…….
छत्तीसगढ़ में पन्द्रह सालों बाद काॅग्रेंस की सरकार बनते ही पत्रकारों की सुद लेने वाले माननीय भूपेश बघेल जी ने पत्रकारों का सुरक्षा अधिनियम की घोंषणा करते हुए अपने अधिकारियों को सुरक्षा अधिनियम बनाने का निर्देश दिया है, जिसमे सुरक्षा अधिनियम के तहत पत्रकारों की योग्यता व कम से कम पन्द्रह वर्षों का अनुभव का ब्यौरा होना चाहिए, इसके साथ ही साथ समाचार पत्रों का भारत सरकार द्वारा पंजीयन भी अनिवार्य रूप से होना चाहिए, और अगर कोई व्यक्ति किसी समाचार पत्र में छः माह कार्य करने के बाद उस समाचार पत्र के मालिक का पैसा मार के फिर दुसरा पेपर पकड़ लेते हैं, इस तरह के व्यक्तियों को इस अधिनियम में जोड़ना उचित नहीं होगा, और इसमें स्वामित्व, मुद्रक, प्रकाशक व संपादक जिसका एक ही व्यक्ति हो तो उसका आदेश लेना अनिवार्य होगा, इस अधिनियम में पोटल वालों को सम्मिलित करना उचित नहीं है, नियमानुसार जिस किसी के परिवार में कोई शासकीय नौकरी करते हैं तो उनको पत्रकारिता में अधिकारियों पर दबाव न डालने का वजह बनता है, और प्रेस एक्ट में उल्लेख भी है कि किसी भी शासकीय कर्मचारी का परिवार पत्रकारिता नहीं कर सकता, जैसे कुछ लोग पत्रकारिता के आड़ में अधिकारियों पर दबाव डालकर ठेकेदारी भी करते हैं, इन सभी बिन्दुओं के आधार पर किसी समाचार पत्र वाले के ऊपर पुलिस विभाग द्वारा फर्जी व द्वेष पूर्ण ढ़ंग से फँसाया गया है तो, सुरक्षा अधिनियम को देखते हुए उस व्यक्ति के न्यायालय से सभी केश समाप्त करने होंगे, वर्तमान में किसी पत्रकार या संपादक के ऊपर मामला दर्ज करने से इन बातों को ध्यान देवें की पहले शासन के द्वारा एक समीति बनाई जाती है, जिसमें एक सदस्य वरिष्ठ पत्रकार होता है, अगर किसी भी पत्रकार के ऊपर झूठा मनगणत शिकायत की जाती है तो समीति के समक्ष पेश करके व समझौता करके निपटारा किया जा सकता है, पत्रकार एक निस्वार्थ, निस्पक्ष समाज का चैथा स्तंभ होता है, इसलिए उनके ऊपर अपराधियों का नजर हमेशा रहता है, और पत्रकार को फसाने के लिए गवाह भी जल्द ही मिल जाते हैं, देखा यहाँ तक भी गया है कि पत्रकार के खिलाफ पत्रकार ही गवाह बन जाते हंै, ऐसे भी नई पीढ़ी के पत्रकार देखने को मिलेंगे की पत्रकारिता से पहले उनके परिवार व स्वयं के ऊपर अनेको मामले दर्ज होंगे, पत्रकारिता में समाचार पत्र पाक्षिक हो साप्ताहिक हो या दैनिक हो सभी को सुरक्षा अधिनियम का लाभ मिलना चाहिए, अगर इन सभी बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाए तो जो गाजर घास की तरह पत्रकार उपजे हुए हैं वे सब लुप्त हो जाऐंगे, मीडिया के नाम पर नई उत्पŸिा होगी व समाज भी पत्रकारों को सम्मान देगी।