मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने 15 साल का वनवास खत्म कर सत्ता में शानदार वापसी की है। कांग्रेस की इस जीत के शिल्पकार कमलनाथ हैं। कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी ने वह कमाल कर दिखाया जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी।
17 दिसंबर को कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जब शपथ लेंगे तो सूबे में कांग्रेस की एक नए अध्याय की शुरुआत होगी। पार्टी को 15 सालों के बाद मिली ये जीत कई मायनों में खास है। मध्यप्रदेश में बीजेपी को चौथी बार सरकार बनाने से रोकना कोई आसान काम नहीं था। चुनावी साल के शुरुआती महीनों में कांग्रेस बीजेपी से हर मोर्चे पर पिछड़ती-सी नजर आ रही थी। कोई भी यह कहने को तैयार नहीं था कि बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस सूबे में कही खड़ी भी होगी।
एक ओर जहां बीजेपी सत्ता में वापसी का प्लान तैयार कर रही थी, तो मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को यह भी नहीं पता था कि चुनाव में उनका नेता कौन होगा। इस बीच कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश संगठन में बड़ा फेरबदल करते हुए पार्टी के सबसे अनुभवी नेता और छिंदवाड़ा से सांसद कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंप दी। कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान एक ऐसे वक्त सौंपी गई जब पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल पूरी तरह टूटा हुआ था।
15 साल से सत्ता से दूर पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को लग रहा था कि अब पार्टी में उनकी कोई पूछ-परख नहीं बची है। ऐसे में कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस की कमान अपने हाथ में लेते ही सबसे पहले पार्टी के संगठन को मजबूत करने का काम करना शुरू किया। कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही कहा कि उनका मुकाबला बीजेपी के संगठन से है और उनका पहला काम पार्टी के संगठन को मजबूत करना है। कमलनाथ ने अध्यक्ष बनने के शुरुआती तीन-चार महीनों तक अपना पूरा फोकस पार्टी के संगठन को मजबूत करने पर रखा।
संगठन के कैडर में कसावट लाने के लिए कमलनाथ ने जिले से लेकर बूथ स्तर तक पार्टी के संगठन को खड़ा करने का काम शुरू किया। इसके साथ कमलनाथ ने वोट बैंक को साधने के लिए भोपाल में कर्मचारी, व्यापारी और मजदूर संगठनों के नेताओं से मुलाकात कर उनकी कांग्रेस के साथ ला खड़ा करने के लिए तैयार किया। कमलनाथ के सामने यह काम किसी चुनौती से कम नहीं था। कमलनाथ के लिए कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष पद भी कांटों के ताज जैसा ही था।
कमलनाथ को जहां एक ओर पार्टी की आंतरिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा था तो दूसरी ओर उनका मुकाबला एक ऐसे नेता शिवराज सिंह चौहान से होने जा रहा था जिसको मध्यप्रदेश में बीजेपी की जीत की गारंटी माना जाता था। राजनीतिक पंडित भी यह कहने से पीछे नहीं रहे थे कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के तिलिस्म को तोड़ना कमलनाथ के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। कमलनाथ ने कांग्रेस की बागड़ोर ऐसे समय अपने हाथों में सभाली जब उनके मुख्य विरोधी शिवराजसिंह चौहान का कद आसमान छू रहा था।
कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिवराज सिंह चौहान के उस तिलिस्म को तोड़ना था जिसके बल पर बीजेपी एक बार सत्ता में वापसी का सपना देख रही थी। इसके लिए कमलनाथ ने राहुल गांधी के साथ मिलकर बीजेपी के 15 साल से अभेद बने किले मध्यप्रदेश को फतह करने के लिए एक ऐसा चक्रव्यूह बनाया जिसको बीजेपी भेद नहीं पाई। कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने पार्टी के युवा नेता और सूबे में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय चेहरे को रूप में माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने का काम किया।
पार्टी हाईकमान ने पार्टी में गुटबाजी को खत्म करने का जिम्मा कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले और सूबे में कांग्रेस के सगंठन की रग-रग से वाकिफ दिग्विजय सिंह को दिया। 2008 और 2013 की करारी हार के लिए सबसे बड़ा कारण माने जाने वाली गुटबाजी को खत्म करने के लिए दिग्विजय सिंह को समन्वय समिति की कमान सौंपी गई। पार्टी के निष्क्रिय तंत्र को सक्रिय करने के लिए दिग्विजय ने प्रदेश के सभी जिलों का मैराथन दौरा किया। जिलों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक जुट करने के लिए दिग्विजय ने सभी को एकसाथ मंच पर लाने के लिए संगत की पंगत कार्यक्रम चलाया।
इस कार्यक्रम में हर कार्यकर्ता को अन्न-जल की कसम दी गई कि टिकट किसी को मिले, कार्यकर्ता पार्टी की जीत के लिए काम करेगा। इसके साथ दिग्विजय सिंह ने घर बैठ चुके कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं को घर से निकालकर एक बार चुनावी रणभूमि में ला खड़ा कर दिया। दूसरी ओर प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े लोकप्रिय चेहरे को रूप में देखे जाने वाले कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ के साथ कदमताल करते हुए पार्टी की मजबूती के लिए पूरे सूबे में रोड शो के जरिए बदलाव की जमीन तैयार की।
सिंधिया के मैदान में आ जाने से कांग्रेस कार्यकर्ता दोगुने जोश के साथ चुनावी समर मे कूद पड़े। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के इन तीन सबसे बड़े नेताओं ने जब एक साथ तीन मोर्चों पर काम करना शुरू किया। तो देखते ही देखते चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस बीजेपी पर बढ़त बनाते हुए दिखने लगी। कमलनाथ की अगुवाई में सिंधिया और दिग्विजय सिंह की तिकड़ी ने उस कांग्रेस को महज सात महीने में फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया, जो कि अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही थी।