मध्यप्रदेश की 230 एवं छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में इस बार भाजपा को तगड़ा झटका लग सकता है, वहीं कांग्रेसी खेमे में खुशी की लहर दौड़ सकती है। हालांकि हकीकत 11 दिसंबर को मतगणना के बाद ही सामने आ पाएगी।
दोनों ही राज्यों में वोटिंग के बाद जब मतदाताओं की नब्ज टटोली और राजनीतिक विशेषज्ञों से बात की तो कुछ इसी तरह के संकेत मिले। पूरे मध्यप्रदेश में इस बार किसान आंदोलन और एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा हावी रहा, जो कि भाजपा के लिए नुकसान पहुंचाता हुआ दिख रहा है। इन मुद्दों पर मतदाता की नाराजगी साफतौर पर देखी गई।
आमतौर पर माना जाता है कि शहरी मतदाता भाजपा के पक्ष में मतदान करता है, लेकिन इस बार ऐसा दिख नहीं रहा। मध्यप्रदेश के बड़े शहरों- भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में भाजपा को झटका लग सकता है। भोपाल उत्तर सीट पर आरिफ अकील का पलड़ा भारी है, वहीं गोविंदपुरा सीट पर बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर अपनी परंपरागत सीट पर बढ़त बना सकती हैं।
पिछली बार इंदौर की 9 में से 8 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार पांच सीटों तक सिमट सकती है। हालांकि इंदौर-2 और इंदौर-4 में भगवा पार्टी की जीत तय मानी जा रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में उसे अच्छा-खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसा माना जा रहा है पिछली बार प्रदेश में जीत का रिकॉर्ड बनाने वाले रमेश मेंदोला की जीत का अंतर भी काफी कम हो सकता है। इंदौर-1 में भी सुदर्शन गुप्ता बनाम संजय शुक्ला के बीच मुकाबला कांटे का है, परिणाम कुछ भी हो सकता है।
ग्वालियर की 6 में से 4 सीटों पर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सबसे अहम बात यह है कि यहां से कैबिनेट मंत्री जयभान सिंह पवैया अपनी सीट गंवा सकते हैं। ग्वालियर पूर्व सीट पर भाजपा ने इस बार मायासिंह को आराम देकर नए चेहरे सतीश सिकरवार को चुनाव में उतारा था, लेकिन यहां से भाजपा को निराश होना पड़ सकता है। जबलपुर में भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
मालवा-निमाड़ को भाजपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस बार यहां से भाजपा के लिए अच्छी खबरें नहीं आ रही हैं। पिछली बार भाजपा ने मालावा-निमाड़ इलाके में कांग्रेस का सफाया करते हुए 57 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 9 सीटें ही आई थीं। किसानों के कर्ज माफी के मुद्दे पर कांग्रेस को बड़ी सफलता मिलती दिख रही है। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रेमचंद गुड्डू के पुत्र अजय बौरासी घट्टिया सीट पर नुकसान उठा सकते हैं।
मध्य भारत में कांग्रेस इस बार अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। अनुमान के मुताबिक इस बार मध्य भारत की कुल 36 विधानसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में कांटे का मुकाबला है। पिछली बार 29 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार बड़ा झटका लग सकता है। भोजपुर सीट पर प्रदेश के मंत्री सुरेन्द्र पटवा कांग्रेस के सुरेश पचौरी के खिलाफ मुकाबले में पिछड़ सकते हैं।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां भी भाजपा की हालत पतली दिखाई दे रही है। यहां रमनसिंह की वापसी मुश्किल दिख रही है। राज्य के लोगों की राय के मुताबिक कांग्रेस को 48 से 52 सीटें मिल सकती हैं, जबकि सत्तारुढ़ भाजपा 30 से 35 सीटों के बीच सिमट सकती है। अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस और बसपा के गठबंधन को 3-4 सीटें मिल सकती हैं।
यहां की प्रमुख सीटों में राजनांदगांव सीट पर मुख्यमंत्री रमनसिंह का पलड़ा भारी है। उनके सामने कांग्रेस ने भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी को उतारा है। पाटन सीट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल बढ़त बना सकते हैं, वहीं रामपुर में परिणाम भाजपा के दिग्गज नेता ननकीराम कंवर के पक्ष में जा सकता है।
राज्य की मरवाही सीट पर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का पलड़ा भारी है, वहीं कोटा में उनकी पत्नी रेणु जोगी भाजपा की काशी साहू के खिलाफ बढ़त बना सकती हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक भी कांग्रेस के राजेन्द्र शुक्ला के खिलाफ अपनी बढ़त बना सकते हैं। बिलासपुर में भाजपा सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल का पलड़ा भारी दिख रहा है तो पूर्व केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत सक्ती सीट पर बढ़त बना सकते हैं।
राजिम में कांग्रेस के अमितेश शुक्ला, दुर्ग में मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा बढ़त बना सकते हैं, वहीं रायपुर दक्षिण सीट पर रमन सरकार के मंत्री ब्रजमोहन अग्रवाल के पक्ष में परिणाम जा सकता है।