संतोष जैन मनेन्द्रगढ़…
कोयले की भूमिगत खानों में जो ठेका श्रमिक बांट रखें ठेकेदार को हाजरी के बदले कोई भी पैसा नहीं दिया जाता है वर्ण उन्हें कानों के अंदर कोई कार्य दिखाया जाता है जैसे पुताई सफाई या परिवहन संबंधी कार्य में खाया जाता है या स्टॉपिंग बनाना दिखाया जाता है उसके बदले ठेकेदार को पैसा दिया जाता है ठेकेदार बदले में श्रमिक देकर कोयला उत्पादन कराता है अर्थात यह कटु सत्य है कि जिस बात का कंपनी पैसा देती है वह कार्य वास्तव में नहीं होता है और वास्तव में जो कार्य होता है उसके बदले पैसा देना कानून रूप से संभव नहीं है बिना देखे कितने बड़ा घालमेल हो रहा है श्रमिक ठेकेदारी से जो कार्य करेगा वास्तव में उसका पैसा नहीं पाएगा ठेकेदार उसका पैसा का जो कार्य करेगा ही नहीं जब पूरी बुनियादी कागज की नाव पर है तो भ्रष्टाचार की कल्पना करना कोई बड़ी बात नहीं होगी पूरे देश में लगभग यही स्थिति है हमारे रगों में गुलामी इस तरह बस गई है कि जब तक कोई चाबुक लेकर खड़ा नहीं होता हम कोई भी काम नहीं करना चाहते आलस हरामखोरी इतनी रच बस गई है कि जैसे-जैसे वेतन वृद्धि मिलती है तनख्वाह बढ़ती है काम की कार्यविधि घट जाती है जहां जहां तनख्वाह कम है वहां वहां कार्य करने की अवधि अधिक है जिसको वेतन का मिलता है वह अपनी कार्यकुशलता बनाना चाहता है तरह-तरह का वह करके अपने आप को पागल बनाना चाहता है जहां पर यदि प्रशिक्षण प्राप्त करने जाता है तो भी वहां होता है और केवल खाता है कैसे बना है जहां जहां वेतन कम है वहां परिणाम मूलक कार्य हो रहे हैं उनके आ रहे हैं जहां जहां राष्ट्रीयकरण हुआ है वहां पर केवल हरामखोरी है इतिहास गवाह है कि देश व्यक्तिगत रूप से चाहे जितना निर्धन हुआ हो परंतु यहां के कुछ लोग अरबपति खरबपति और ना जाने कौन-कौन सी हो गए हैं चंद्र कुछ आजा लोगों के पास बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी खत्म हो गई है जबकि 90 पचासी परसेंट लोग आज भी अपनी बुनियादी सुविधाओं के लिए पूछ रहे हैं हजारों में पैदल चल रहे हैं