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छत्तीसगढ़ के ‘डैम मैन’ लिंगाराम, अकेले ने बना दिया बांध, 600 परिवारों को मिल रहा लाभ……

पांचवीं तक शिक्षित लिंगाराम बताते हैं कि पहले तो नहीं, लेकिन बाद में परिवार के लोग भी कभी-कभार श्रमदान करने को आने लगे।

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दंतेवाड़ा। माउंटेन मैन दशरथ मांझी की कहानी आपने सुनी होगी। संभवत: उन पर बनी फिल्म भी देखी होगी। यह प्रेरणादायी पात्र निस्संदेह आपके दिल के करीब होगा, लेकिन आज हम आपको छत्तीसगढ़ के डैम मैन यानी दंतेवाड़ा जिले के ग्राम गदापाल निवासी किसान लिंगाराम मंडावी के बारे में बताने जा रहे हैं। साधारण से दिखने वाले इस शख्स ने असाधारण काम किया है। करीब पांच साल तक अकेले श्रमदान करके गांव में बांध बना दिया। आज इस बांध में पहाड़ी नाले का इतना पानी रुकता है कि गदापाल को जलसंकट से मुक्ति मिल गई है।

लिंगाराम गदापाल के पूर्व सरपंच हैं। वो बताते हैं कि गांव में एक छोटा-सा तालाब है, जिसे उनके दादा टोंडाराम ने खुदवाया था। गर्मी में यह सूख जाता था। गांव में छह हैंडपंप हैं। वो भी जवाब दे देते थे। पीने का पानी तो दूर, निस्तारी के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाता था। इस बात को लेकर वे हमेशा परेशान रहते थे।

उन्होंने बताया कि गांव के करीब ही एक पहाड़ी नाला बहता है। गर्मी में यह भी सूख जाता है। ऐसे में एकाएक विचार आया कि यदि इस पहाड़ी नाले के पानी को किसी तरह रोक दिया जाए तो पानी की समस्या से मुक्ति मिल सकती है। बस फिर क्या था। दूसरे ही दिन कुदाल और फावड़ा लेकर बांध बनाने में जुट गए।

पांचवीं तक शिक्षित लिंगाराम बताते हैं कि पहले तो नहीं, लेकिन बाद में परिवार के लोग भी कभी-कभार श्रमदान करने को आने लगे। अब इस बांध में काफी पानी इकठ्ठा होता है। इसका असर अन्य जलस्रोतों पर भी पड़ रहा है। कुएं, तालाब, हैंडपंप सभी अब पहले की तरह सूखते नहीं। लोग अब उनकी मिसाल देते हैं।

लिंगाराम बताते हैं कि इस बांध से गदापाल-गढ़मिरी पंचायत के करीब 600 परिवारों को लाभ मिल रहा है। सिंचाई पानी भी उपलब्ध हो रहा है। मवेशियों के लिए भी बड़ी सुविधा हो गई है। गदापाल के पटेलपारा और टीचरपारा सहित गढ़मिरी पंचायत के हंदोड़ीपारा के लोगों को भी इससे काफी राहत मिली है।

परिजनों और गांववालों को जब यह पता चला तो ज्यादातर उनकी हंसी उड़ाने लगे। कुछ तो सनकी कहने से भी नहीं चूके, लेकिन उन्होंने ठान ली थी कि कितना भी वक्त लगे, किसी की मदद मिले या ना मिले, बांध बनाकर रहेंगे। जब भी समय मिलता, फावड़ा लेकर पहुंच जाते पसीना बहाने के लिए।

मौसम की भी कभी परवाह नहीं की। मन में एक बात उठती, गांववालों को ऐसा तोहफा दूं, जिसे वो हमेशा याद रखें। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लिंगाराम बांध बनाने के लिए कई साल तक अकेले जुटा रहा। अक्सर कुदाल-फावड़ा लेकर घर से निकल जाता था। पहले हम उसकी मंशा समझ नहीं पाए थे। लेकिन आज उसकी जीवटता को सभी सलाम करते हैं।

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