रायपुर । छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में किसानों और आदिवासियों ने मंगलवार को दिल्ली कूच किया। वहां 21 नवंबर को संसद के बाहर होने वाले प्रदर्शन में शामिल होंगे। इस प्रदर्शन में देशभर से करीब एक लाख से अधिक आदिवासी और किसानों के शामिल होने की संभावना है। छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि किसानों और आदिवासियों के देशव्यापी प्रतिरोध आंदोलन का नतीजा ही है कि वन कानून में प्रस्तावित खतरनाक आदिवासी विरोधी और वनाधिकार कानून विरोधी संशोधनों को मोदी सरकार को वापस लेना पड़ा है।
लेकिन पर्यावरण के नाम पर आदिवासियों को जंगलों से विस्थापित करने और जल, जंगल, जमीन और खनिज को कॉर्पोरेटों को सौंपने की उसकी मंशा में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया है। इस वजह से वनाधिकार कानून, पेसा कानून और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को पूरी तरह सही मायनों में लागू करने और ग्राम सभा की सर्वोधाता को स्वीकृति देने के लिए आदिवासी समुदाय का संघर्ष जारी रहेगा। किसान सभा नेताओं ने सोमवार को रायपुर में हुई हुंकार रैली के बाद वन भूमि पर काबिज आदिवासियों को बेदखल न करने की मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा का स्वागत किया है। साथ ही मांग की है कि इस घोषणा के अनुरूप स्पष्ट आदेश जारी किए जाए और हसदेव अरण्य और बैलाडीला की पहाड़ियों को अडानी को देने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। गौरतलब है कि इससे पहले धान खरीदी के मुद्दे पर भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार को घेरा था।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ में 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर धान उपार्जन करने और 32 लाख मेट्रिक टन चावल केन्द्रीय पूल में लेने का आग्रह किया है। मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा है कि यदि भारत सरकार द्वारा समर्थन मूल्य में वृद्घि नहीं की जाती है, तो राज्य को वर्ष 2017 और वर्ष 2018 की भांति ही उपार्जन के एमओयू की शर्तों में शिथिलता प्रदान की जाए ताकि राज्य सरकार द्वारा अपने संसाधनों से प्रदेश के किसानों को उनकी उपज का समूचित मूल्य दिलाया जा सके। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्तर के इस अत्यावश्यक आर्थिक विषय पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री से शीघ्र अतिशीघ्र मिलने हेतु समय प्रदान करने का भी पुनः अनुरोध किया है।