उज्जैन। राजाधिराज महाकाल के आंगन में कार्तिक अमावस्या से एक दिन पूर्व दीपपर्व मनाया जाता है, किंतु इस बार रूप चतुर्दशी और अमावस्या एक ही दिन होने से विशेष संयोग बन रहा है। यानी ज्योतिर्लिंग में इस बार 27 अक्टूबर को दीपावली मनाई जाएगी। 23 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब प्रजा राजा के साथ दीपावली मनाएगी। मंदिर में इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं। परंपरा अनुसार महाकाल मंदिर में चतुर्दशी के दिन तड़के भस्मारती में दिवाली मनाई जाती है। पं.महेश पुजारी के अनुसार 27 अक्टूबर को तड़के चार बजे भगवान को गर्म जल से स्नान कराने का क्रम शुरू होगा। यह क्रम फाल्गुन पूर्णिमा तक चलेगा। सबसे पहले पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान को केसर,चंदन से निर्मित उबटन लगाएंगी। इसके बाद भगवान को सुगंधित द्रव्यों से स्नान कराया जाएगा। सोने-चांदी के आभूषण धारण कराने के बाद नवीन वस्त्र पहनाए जाएंगे। पश्चात अन्न्कूट लगाकर फुलझड़ी आरती होगी। महाकाल में देव दिवाली देखने के लिए देश-विदेश से भक्त उमड़ेंगे। शाम को दीपावली मनेगी, संध्या आरती में भी भगवान के समक्ष फिर फुलझड़ी चलाई जाएगी।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या पर 27 अक्टूबर को इस बार विशेष संयोग बन रहा है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में रूप चतुर्दशी रहेगी। दिन में सुबह 10.50 बजे के बाद अभिजीत मुहूर्त के साथ दीपावली पूजन के श्रेष्ठ मुहूर्त की शुरुआत होगी। शाम 5.48 से 8.21 बजे तक प्रदोष काल के समय माता लक्ष्मी की पूजा का अतिविशिष्ट समय है। एक दिन में दो पर्वों का संयोग पंचांग के पांच अंगों से संबंधित है।इसके गणितीय पक्ष के अंतर्गत घटी, पल का विशेष महत्व है। रविवार सुबह रूप चतुर्दशी उपरांत अमावस्या व अगले दिन सोमवार को सोमवती अमावस्या का संयोग 30 साल में तीन व चार बाद बनता है। इस बार 23 साल बाद ब्रह्म मुहूर्त में चतुर्दशी व प्रदोष काल में अमावस्या का संयोग बना है। यह योग अभ्यंग स्नान व लक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ है।