धान का कटोरा छत्तीसगढ़, जहां की संस्कृति निराली है। बस्तर की संस्कृति तो देश-विदेश में प्राख्यात है। बस्तर में इन दिनों नयाखानी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। कैसे मना रहे हैं बस्तरवासी नई फसल आने की खुशी यहां हम बस्तर की संस्कृति जानेंगे।
नई फसल आने के उत्साह में मनाए जाने वाले पर्व को बस्तर में नयाखानी कहा जाता है। यह पर्व भाद्रपद नवमी तिथि को मनाया जाता है। बस्तर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों और ओडिशा राज्य में भी यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन कुलदेवी की पूजा आराधना के पश्चात नया चावल का भोग लगाकर परिवार के सभी सदस्य मस्तक में नये अन्न का टीका लगाकर भोजन ग्रहण करते हैं।
चढ़ता है नए अन्न का प्रसाद
नयाखानी के दिन परिवार या कुटुंब के सभी सदस्य एक जगह पर एकत्रित होते हैं। पूजन स्थल में मिट्टी से निर्मित बैल को रखते हैं। परिवार प्रमुख द्वारा कुलदेवी की पूजा अर्चना कर नया चावल का प्रसाद कुल देवी को अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात परिवार के सभी सदस्य नई धान के चावल से निर्मित आटा का माथे पर टीका लगाते हैं। नए चावल से निर्मित भोजन या खीर, अन्य पकवान को कोरई पत्ते में परोसकर ग्रहण करते हैं।नया खानी पर्व में नए वस्त्र धारण करने का विधान है। परिवार के सभी सदस्य कुलदेवी की पूजन से पहले नए कपड़े पहनते हैं।
विशेष पत्ते व धान का होता है उपयोग
नया खानी पर्व में भोजन ग्रहण करने के लिए विशेष पत्ते का उपयोग होता है। जिसका वृक्ष बस्तर के वनों में पाया जाता है। जिसे स्थानीय हलबी बोली में कोरई कुड़ई पत्ता कहते हैं। ग्रामीण साटका-पारा नामक धान की एक स्थानीय किस्म की खेती करते हैं जो पर्व से पहले ही पक कर तैयार होती है।
मिट्टी से निर्मित खिलौने से खेलते हैं बच्चे
छोटे बच्चों को वास्तविक जिंदगी की सीख देने वाले इस पर्व में मिट्टी के बर्तनों से खेलते हैं। छोटी बालिकाएं इस दिन मिट्टी से निर्मित चूल्हे,चाक हंडी ,कढ़ाई में भोजन पकाती हैं। बालक मिट्टी से निर्मित खिलौने बैल जिसे स्थानीय बोली में नांदिया कहते हैं, से खेलते हैं।
दूसरे दिन चलता है बधाई देने का दौर
नया खानी के दूसरे दिन एक दूसरे से मिलकर नया खानी की बधाई देने की परंपरा है। गांवों में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ लोक नृत्य करते महिला पुरुष घर- घर जाकर एक-दूसरे को नया खानी की शुभकामनाएं देते हैं।