हमारे हिन्दुस्तान में मुस्लिम वक्फ बोर्ड को लेकर सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली असेंबली व उप राष्ट्रपति के विचारों द्वारा मतभेद बढ़ता जा रहा है। हकीकत देखा जाये तो लोकसभा व राज्यसभा ही कानून बनाती है। कानून बनाने के पश्चात महामहीम राष्ट्रपति के पास प्रस्तुत किया जाता है। पर वक्फ बोर्ड को लेकर न्याय पालिका एवं कार्यपालिका में विचार मतभेद बनते जा रहे है। पर इस विवाद में जिनको लाभ मिला है वही आगे बढ़ रहे है।
जानकार सूत्र बताते है कि, जो अधिवक्ता वक्फ बोर्ड की ओर से लड़ रहे है वह चर्चा का विषय बना हुआ है उनके द्वारा वक्फ बोर्ड की जमीन पर भी कब्जा किये हुए है। वक्फ बोर्ड के स्वार्थी धार्मिक नेता व वकीलों का भी इसमें पूरी कहानी बनी हुई है। जबकि किसी भी कंट्री में वक्फ बोर्ड क्यों नहीं ? देखा जाये तो हर कंट्री में हिन्दु है। पर विदेशों में कहीं भी वक्फ बोर्ड का महत्व ही नहीं है। जो वक्फ बोर्ड बकवास बोर्ड बनकर जनता के साथ शोषण कर रहा है। वहीं कुछ लोग लम्बी-लम्बी ईमारते और कालोनी भी बनाकर अपना व्यापार कर रहे है यहां तक कि, वक्फ बोर्ड की जमीन को कुछ नेताओं ने बिक्री भी किया है। जबकि दान की जमीन या कब्जा की हुई जमीन को बेचने का अधिकार किसी को नहीं है। जब वक्फ बोर्ड है तो सनातन बोर्ड भी होना अति आवश्यक है। अब राजनितिक में इतनी दूरियां बढ़ गयी है कि, कार्यपालिका में कानून बनाने वाले ने ही हाथ उठा दिये है। जब हमारे भारतवर्ष में चार स्तम्भ है तो चार स्तम्भ ही एक-दूसरे के आलोचना में लगे हुए है जो सर्वोच्च पद पर बैठे हुए है उस व्यक्ति की भी आलोचना की जाये तो हमारा देश कहां जायेगा ?
लोगों में चर्चा है कि, ऐसा कहीं हुआ तो जो लोग वक्फ बोर्ड की जमीनों को विक्रय कर रहे है उस पर रोक नहीं लगाया गया तो उन लोगों का मनोबल और बढ़ेगा। जिसमें सनातन धर्म वालों का वह समय दूर नहीं जब उनके परिवारों को घर से निकालकर मारेंगे। साथ ही हमारा भारत देश पहले चार टुकड़ो में बटा और अब क्या पांचवां टुकड़े करने की फिराक में है ? जिससे हमारा हिन्दुस्तान ग्लानि की परिभाषा में आयेगा। इस बात पर न्याय पालिका और कार्यपालिका को संज्ञान में लेना चाहिए। यह समाचार कुछ बुद्धिजीवियों के विचारधाराओं द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।