भगवान महावीर का संदेश सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र
भगवान महावीर ने समाज को सम्यक दृष्टि, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण की राह दिखाई जिसमें जीव मात्र के प्रति दया सर्वोपरि है। उनके अनुसार हर प्राणी को जीवन जीने का अधिकार है क्योंकि उसका जीवन उसके कर्मों का परिणाम है। इस दर्शन में समस्त जीवों के कल्याण की भावना निहित है।
समाज के हर व्यक्ति में जीव दया और करुणा का भाव जागृत हो, ताकि भारतवर्ष न केवल जीवों के प्रति दया भाव रखे बल्कि जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण में भी अग्रणी भूमिका निभा सके। यही भगवान महावीर की शिक्षाओं का सार है।
वीतरागता का पथ और मोक्ष की ओर अग्रसर आत्मा
जैन मुनि दीक्षा लेने के पश्चात सांसारिक बंधनों और परिग्रह से मुक्त होकर आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर हो जाते हैं। वे राग, द्वेष और मोह से ऊपर उठकर वीतरागी जीवन जीते हुए केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं और फिर सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर मोक्ष में विराजमान हो जाते हैं। जैन दर्शन के अनुसार ऐसी आत्माएं ही सिद्ध गति को प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर अनंत आत्मिक सुखों में सदाकाल के लिए लीन हो जाती हैं। यही आत्मा की सर्वोच्च उपलब्धि है। इस पावन अवसर पर जैन समाज के युवाओं द्वारा किया गया यह रक्तदान न केवल समाज को प्रेरित करता है, बल्कि भगवान महावीर की शिक्षाओं को व्यावहारिक रूप में जीवन में उतारने का सार्थक प्रयास भी है।