Home कोरिया बैकुण्ठपुर/कोरिया : तहसील कार्यालय के बाबू द्वारा संपादक को उल-जलूल बखान………………

बैकुण्ठपुर/कोरिया : तहसील कार्यालय के बाबू द्वारा संपादक को उल-जलूल बखान………………

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बैकुण्ठपुर जिला-कोरिया के तहसील कार्यालय में संपादक अपने निजी कार्य को लेकर तहसील कार्यालय गये हुए थे, परंतु तहसीलदार महोदया जी के बाबू (अमृता गुुप्ता) द्वारा समाचार को लेकर संपादक के साथ उल-जलूल बखान किया गया है। जबकि समाचार सूत्रों के आधार पर अधारित है। सूत्रों के द्वारा ही उस समाचार को प्रकाशित किया गया था। बता दें कि, उस समाचार से संपादक का कोई भी व्यक्तिगत द्वेष नहीं है।

वही श्रीमान् आयुक्त संभाग सरगुजा द्वारा लगभग दो महीने से तहसील कार्यालय में संपादक जी के कार्य को लेकर आदेश दिया गया था परंतु उस आदेश का भी पालन नहीं किया गया। और आर.आई. का प्रतिवेदन भी बाबू के समक्ष आ चुका है, फिर भी कोई कार्यवाही न होना संदेह के दायरे में है।

समाचार प्रकाशित होना किसी द्वेष व व्यक्तिगत से कोई संबंध नहीं है। बाबू के द्वारा पूछा गया है कि, ‘‘वह कौन सा सूत्र है जिसके माध्यम से आपको मालूम पड़ा ?’’, वह सूत्र हमारे पास प्रस्तुत कीजिए।

बता दंे कि, सुप्रिम कोर्ट के आदेशानुसार- पत्रकार से सूत्र पूछने का किसी को कोई अधिकार नहीं। जबकि इसी संबंध में तहसील कार्यालय के बाबू (अमृता गुप्ता) द्वारा संपादक के साथ दुव्र्यवहार किया गया । इस संबंध में श्रीमान् कलेक्टर महोदय जी एवं एस.डी.एम. महोदया जी को भी पत्र भेजा जा चुका है। ये तो सभी जानते है कि, जांच व कार्यवाही करने का अधिकार प्रशासन का होता है पत्रकार का नहीं। पत्रकार अपने विवके व सूत्र का उपयोग करते है। जो कि बाबू के द्वारा संपादक के लिए दो शब्दो का उपयोग किया गया। और उच्च अधिकारी अम्बिकापुर आयुक्त के निर्देश का पालन करना प्रशासन का होता है। इसमें कोई किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।

 

पत्रकारों से सूत्र पूछने का अधिकार किसी को नहीं – सुप्रीम कोर्ट

✍️सूत्रों के हवाले से खबर लिखने वाले पत्रकारों के लिए अच्छी खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से पुलिस विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों पर जमकर निशाना साधा है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की बेंच ने पुलिस को भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 और 22 की याद दिलाई है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि, ‘पत्रकारों के मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता के खिलाफ पुलिस किसी भी पत्रकार से उनकी खबरों के लिए सूत्र नहीं पूछ सकती है। यहां तक की कोर्ट भी उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। ’चीफ जस्टिस ने कहा कि, ‘आजकल ये देखने को मिल रहा है कि बिना किसी ठोस सबूत और बिना जांच के पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर लिए जाते हैं। श्रेष्ठ बनने के चक्कर में पुलिस पत्रकारों की स्वतंत्रता का हनन कर रही है।’
आपको बता दें कि सूत्रों के हवाले से चलने वाली खबरों के कई मामले कोर्ट में जा चुके हैं। कोर्ट ने पत्रकारों से खबरों के सूत्र बताने का आदेश भी दे चुके हैं लेकिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के इस फैसले के बाद मीडिया जगत में उत्साह है। जानकारी के लिए बता दें कि हमारे देश में किसी विशेष कानून के जरिए पत्रकारों को अधिकार हासिल नहीं हैं। पत्रकारों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार बाकी नागरिकों की तरह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के अंतर्गत ही मिले हुए हैं। पत्रकारों को अपने सूत्र को गोपनीय रखने का अधिकार प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 के तहत मिला हुआ है। इसमें 15 (2) सेक्शन में साफ तौर पर लिखा हुआ है कि किसी भी पत्रकार को खबरों के सूत्र की जानकारी के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता ।

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