रोज खाएँ एक पपीता
पपीता: विटामिन का भंडार
कहा जाता है कि पपीते की तुलना में शीघ्र लाभदायक और प्रभाव दिखलाने वाला अन्य खाद्य पदार्थ शायद ही दूसरा कोई हो। स्वाद की दृष्टि से भी यह सभी को सहज ही पसंद आता है। इसे गरम देशों की एक अमूल्य निधि के रूप में माना जाता है।
इसके वैज्ञानिक विश्लेषण से यह पता लगा कि यह शरीर का क्षार संतुलित रखता है। इसमें विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें विटामिन ‘बी’ काफी मात्रा में और ‘डी’ अल्प मात्रा में पाया जाता है। इसके नियमित उपयोग से शरीर में इन विटामिनों की कमी नहीं रहती। इसमें पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता है, जो बहुत ही पाचक होता है। यह पेप्सिन प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। पपीते का रस प्रोटीन को आसानी से पचा देता है। इसलिए पपीता पेट एवं आँत संबंधी विकारों में बहुत ही लाभदायक है।
यह सर्वविदित तथ्य है कि अधिकांश रोगों की उत्पत्ति पेट के विकारों से ही होती है। कुछ रोग अपवाद हो सकते हैं। उदर संबंधी विकार कई रोगों के आरंभिक लक्षण हैं। यदि इन विकारों को दूर कर दिया जाए तो उन रोगों से बचा जा सकता है। उदर के रोग दूर करने में पपीता बेजोड़ है। यह उदर और आँतों की सफाई कर क्षार का प्राकृतिक स्तर बनाने का काम उत्तम ढंग से करता है।
यदि आँतें स्वच्छ रहें तो भोजन में आनंद आने लगता है तथा रुचिपूर्वक भोजन करने से उसका पाचन भी होता है। इस प्रकार के भोजन से तृप्ति भी मिलती है और स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। आँतें साफ हो जाने से सारे शरीर की सफाई हो जाती है और शरीर की समस्त प्रणालियाँ सशक्त होकर अपना कार्य सुचारु रूप से करने लगती हैं।
पपीते में पाया जाने वाला विटामिन ‘ए’ त्वचा एवं नेत्रों के लिए बहुत आवश्यक होता है। इस विटामिन से त्वचा स्वस्थ, स्वच्छ और चमकदार रहती है। नेत्र रोगों से रक्षा करने में विटामिन ‘ए’ का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है। बच्चों की वृद्धि में और रोगों से बचाव की क्षमता बढ़ाने में भी विटामिन ‘ए’ की आवश्यकता रहती है। पपीते में कैल्शियम भी अच्छी मात्रा में होता है, जो रक्त एवं तंतुओं के निर्माण एवं हृदय, नाड़ियों तथा पेशियों की क्रिया ठीक रहने में सहायक होता है। कैल्शियम नेत्रों के लिए भी आवश्यक माना जाता है एवं माताओं के दूध बनने तथा उसकी मात्रा बढ़ाने में सहायक माना जाता है। शिशुओं और बच्चों के अस्थि निर्माण में भी कैल्शियम का महत्वपूर्ण स्थान है।