कमलनाथ सरकार की अग्नि परीक्षा, अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर तैयार हो रही व्यूह रचना
मध्यप्रदेश में अभी कांग्रेस की सरकार बने एक पखवाड़ा भी नहीं बीता है, लेकिन सरकार और उसके फैसलों को लेकर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस और विपक्षी पार्टी भाजपा में जुबानी जंग तेज हो गई है। 15 साल बाद सत्ता से बाहर हुई भाजपा, कांग्रेस को मात देने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाह रही है। वंदे मातरम् पर उठे विवाद को बाद जिस तरह कमलनाथ सरकार ने अपने फैसले पर यू-टर्न लिया उसे भाजपा अपनी जीत बता रही है।
मीसाबंदियों की पेंशन सहित कई मुद्दों पर भाजपा कांग्रेस को घेरने का कोई भी मौका चूक नहीं रही है। ऐसे में अब सबकी निगाह 7 जनवरी से शुरू होने विधानसभा सत्र पर लग गई है। विधानसभा का पहला सत्र कमलनाथ सरकार के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होने वाला है। सोमवार से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर सत्तारूढ दल कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने आ सकते हैं।
कांग्रेस के समाने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव है। कांग्रेस की कोशिश है कि विधानसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव की नौबत न आए और विधानसभा अध्यक्ष के लिए निर्विरोध उसके प्रत्याशी के नाम पर मुहर लग जाए। कांग्रेस की ओर से विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए सीनियर विधायक एनपी प्रजापति का नाम सामने आया है, वहीं बीजेपी ने विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं।
सूत्र बताते हैं कि बीजेपी विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस की राह में रोड़ा अटकाने की तैयारी कर रही है। बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा कर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल की अग्नि परीक्षा लेना चाह रही है। कमलनाथ कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद जिस तरह सपा-बसपा और निर्दलीय विधायकों ने सवाल उठाए थे, बीजेपी उसका फायदा लेना चाह रही थी। इसको लेकर बीजेपी के अंदरखाने रणनीति भी तैयार हो रही है। बीजेपी विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारकर सदन में पहले दिन से ही सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रही है।
सत्तारूढ़ दल कांग्रेस भी बीजेपी को पटखनी देने का कोई मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती। बीजेपी अगर विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार मैदान में उतारती है तो कांग्रेस, भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए उपाध्यक्ष पद के लिए भी अपना दावा करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए कांग्रेस अपने सहयोगी दल बसपा या सपा के विधायक को विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतार सकती है।
ऐसे में अगर कांग्रेस का उम्मीदवार चुनाव जीतता है तो विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पदों पर कांग्रेस का कब्जा हो जाएगा। सदन का मौजूदा सियासी गणित भी अभी कांग्रेस के पक्ष में है। अगर बात करें सदन के मौजूदा सियासी समीकरणों की तो कांग्रेस के खुद के 114 विधायक सदन में हैं, वहीं सपा 1, बसपा के 2 और 4 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सदन में सरकार के पक्ष में कुल विधायकों की संख्या 121 है, वहीं बीजेपी 109 विधायकों के साथ विधानसभा में विपक्ष में मौजूद है।
अगर आंकड़े देखे जाएं तो कांग्रेस को विधानसभा अध्यक्ष के लिए कोई मुश्किल का सामना नहीं कर पड़ेगा। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश होगी कि अध्यक्ष पद के लिए उसको भाजपा से कोई चुनौती न मिले, लेकिन भाजपा ने उसकी राह में रोड़े अटकाए तो कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पदों पर अपनी दावेदारी कर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर देगी। अब देखना होगा कि विधानसभा में कौनसा दल किस पर भारी पड़ता है।