आदि शंकराचार्य एक महान भारतीय गुरु तथा दार्शनिक थे जिन्होंने नए ढंग से हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार किया और लोगों को सनातन धर्म का सही अर्थ समझाया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ही आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी में केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। माना जाता है कि स्वंय भगवान शिव शंकराचार्य के रूप में जन्म लिए थे। गोविन्द भगवत्पाद, आदि शंकराचार्य के गुरु थे।
शंकराचार्य जयंती 17 मई को : 1000 साल पहले केरल के कालड़ी गांव में हुआ था आदी शंकराचार्य का जन्म हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को भगवान शंकराचार्य का जन्म हुआ था। इस बार ये तिथि सोमवार, 17 मई को है।
उन्होंने जिस दशनामी संप्रदाय की स्थापना की थी वे सभी भगवान शिव के उपासक हैं। हालांकि, उनका सिद्धांत शैववाद और शक्तिवाद से बहुत दूर है। उनके कार्यों के अनुसार वे वैष्णववादी माने जाते हैं, परंतु आदि शंकराचार्य द्वारा शिव मानस स्तुति की रचना की गई है जिससे यह सिद्ध होता है कि वे शिव के उपासक थे।
उन्होंने जिस दशनामी संप्रदाय की स्थापना की थी वे सभी भगवान शिव के उपासक हैं। हालांकि, उनका सिद्धांत शैववाद और शक्तिवाद से बहुत दूर है। उनके कार्यों के अनुसार वे वैष्णववादी माने जाते हैं, परंतु आदि शंकराचार्य द्वारा शिव मानस स्तुति की रचना की गई है जिससे यह सिद्ध होता है कि वे शिव के उपासक थे।
क्या आदि शंकराचार्य संस्कृत जानते थे? उनकी मातृभाषा संभवतः कोडुन्थामिज़ (கொடுந்தமிழ்), या मणिप्रवालम (മണിപ്രവാളം) थी, जिससे बाद में मलयालम विकसित हुई। वह निश्चित रूप से संस्कृत जानते थे क्योंकि कई संस्कृत रचनाएँ और टिप्पणियाँ उन्हीं की देन हैं।
शंकराचार्य को हिंदू धर्म में सबसे प्रभावशाली दार्शनिकों में से एक माना जाता है। वह धर्म को उसके वर्तमान स्वरूप में परिभाषित करने और व्यवस्थित करने के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने अद्वैत वेदांत के विकास में भी योगदान दिया, जो हिंदू दर्शन का एक स्कूल है जो गैर-द्वैत और सभी वास्तविकता की एकता पर जोर देता है।
आचार्य शंकर ने सोलह वर्ष के अल्प समय में ही बौद्ध धर्म ही नहीं बल्कि अन्य दिशाहीन धर्मों पर विजय प्राप्त कर सनातन धर्म की पुनः स्थापना की। उनका पवित्र शरीर 32 वर्ष की आयु में वर्ष 2663 में 475 ईसा पूर्व कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन पर निधन हो गया। जब वे 32 वर्ष की आयु में थे उन्होंने केदारनाथ में संजीवन समाधि ले ली।