गोरखपुर : गाजियाबाद में नकली दवाओं की बड़ी खेप पकड़े जाने के बाद यह मामला सुर्खियों में आ गया है। नकली दवा के धंधे का जाल शहर से लेकर गांवों तक फैला हुआ है। हर महीने ढाई से तीन करोड़ रुपये की नकली दवाएं गोरखपुर से बिहार और पश्चिम बंगाल भेजी जा रही हैं। गोरखपुर में करीब 25 से 30 करोड़ रुपये का दवा का कारोबार है। भलोटिया मार्केट, पूर्वांचल की दवा की सबसे बड़ी मंडी है। यहां हर प्रकार और हर ब्रांड की दवाएं थोक भाव में मिलती हैं। यहां से गोरखपुर-बस्ती और आजमगढ़ मंडल तक दवाएं भेजी जाती हैं। इसके अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल में भी यहां से दवाओं की आपूर्ति होती है। दाे साल पहले नोएडा में नकली दवा बनाने की कंपनी पकड़ी गई थी। पूछताछ में पता चला कि नकली दवाएं गोरखपुर और वाराणसी के रास्ते बिहार, पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों तक पहुंचती हैं। पकड़े गए लोगों ने बताया था कि नकली दवाओं के धंधे में दो नेटवर्क काम करता है। एक नेटवर्क दवाओं की बड़ी खेप को हिमाचल और पंजाब में चल रही कंपनियों से गोरखपुर की मंडी तक लाता है। इसके बाद दूसरा नेटवर्क इसे छोटे-छोटे बाजार तक पहुंचाता है। ब्रांडेड दवा के नाम से मिलती जुलती ये दवाएं सस्ते दर पर बेच दी जाती हैं। मसलन कि ब्रांडेड दवाएं अगर 50 रुपये पत्ता की मिलती हैं तो नकली दवाएं 30 से 40 रुपये में उपलब्ध कराई जा रही हैं। इनमें ज्यादातर कैंसर की दवाएं हैं। इसके अलावा गर्भपात, फेफड़े सहित विभिन्न तरह से संक्रमण, गठिया, रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी दवाएं भी शामिल हैं। ड्रग इंस्पेक्टर जय सिंह ने बताया कि गोरखपुर में नकली दवाओं के धंधे की कोई जानकारी नहीं है। हर महीने दुकानों से 15 सैंपल लिए जाते हैं। इनकी जांच रिपोर्ट भी आती है। जिले में नकली दवाओं के धंधे पर रोक लगाने के लिए लगातार जांच होती रहती है। फिलहाल गोरखपुर में कोई विशेष जांच कराने की योजना नहीं है। जिन 22 दवाओं में ऐलोपैथ के मिश्रण पाए गए हैं, उनमें से अधिकांश एलर्जी, बुखार, दर्द, शक्तिवर्द्धक और पेट से संबंधित हैं। इसके अलावा 10 दवाओं के नमूने जांच में फेल हो गए हैं। इनमें दाद-खाज खुजली, शक्तिवर्द्धक और पेट से संबंधित हैं। जो दवाएं नकली व अपमिश्रित पाई गई हैं, उन सभी को जन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया गया है।