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बदलते मौसम में बढ़ते हुए कीट रोग आपतन से फसलों को बचाने के लिए किसानों को सामायिक सुझाव……….

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नरसिंहपुर, 08 फरवरी 2024. कृषि विज्ञान केंद्र नरसिंहपुर के वैज्ञानिको एवं कृषि विभाग के उप संचालक श्री उमेश कुमार कटहरे, कृषि वैज्ञानिक श्री विशाल मेश्राम, श्री विजय सिंह सूर्यवंशी, श्री एसआर शर्मा, डॉ. आशुतोष शर्मा एवं सभी वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारियों द्वारा भ्रमण कर खेतों में जाकर देखा कि किसानों द्वारा बोई गई मसूर, चना, गेहूं की फसल कम एवं ज्यादा तापमान व अधिक आद्रता होने के कारण रोग और किट से ग्रसित होती जा रही है। मसूर की लगभग सभी प्रजातियों में रतुआ (लालिमा) रोग से प्रभावित हैं। इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर धब्बे बनते हैं, जो समय के साथ एक दूसरे से मिलकर पत्तियों को हल्की लाल रंग पट्ट देते हुए सुखा देते हैं। यह फफूंद जनित रोग है।

इसके नियंत्रण के लिए किसानों को सलाह दी गई है कि हेक्साकोनोजोल 400 मिली लीटर प्रति एकड़ या मैनकोज़ेब 400 से 500 ग्राम प्रति एकड़ या प्रोपिकोनोजोल 200 मिलीलीटर या टेबुकोनोजोल प्लस एजाक्सीस्टोरविन 150 से 200 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करके रोका जा सकता है। यदि आवश्यक हो तो 15 दिन के अंतराल पर दूसरी फफूंदनाशी का प्रयोग भी करें।

चने में जड़ सड़न रोग भ्रमण के समय लगभग सभी ब्लॉकों में पाया गया। इसके प्रभाव से चने की पत्तियां पीली पड़ रही है, जड़ के ऊपरी भाग पर सफेद फफूंद चारों तरफ दिखाई देता है, जड़े हल्के लाल रंग की उखाड़ने पर दिखाई दे रही हैं तथा पौधा आसानी से उखड़ जाता है। कभी- कभी जड़ व जमीन के नजदीक के तनाभाग पर काला धब्बा भी दिखाई देता है उपरोक्त सभी लक्षण भूमि जनित फफूंद जैसे फ्यूजेरियम/ राइजोक्तोनिया एवं स्क्लेरोजियम के द्वारा होता है। इसके नियंत्रण के लिए किसान थाओफेनेट मैथाइल 300 से 400 ग्राम या थाओफेनेट मैथाइल प्लस मेंकोजेब या टेबुकोनोजॉल प्लस सल्फर 400 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें। अगली लेने वाली फसल में भूमि उपचार 2 किलो ट्राइकोडर्मा प्लस 40 किलो पक्की गोबर की खाद को मिलाकर बुवाई पूर्व खेत में डालें।

जिन फसलों में इल्ली का प्रकोप हो, उसके नियंत्रण के लिए किसान ईमेमेक्टिनबेंजोएट 80 ग्राम या क्लोरेंटानिलीप्रोन 40 से 50 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। सरसों, मसूर, भिंडी आदि फसलों में चूसक कीट का आपतन पाया गया। इसके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशी वर्टिसिलियम 400 एमएल प्रति एकड़ या रासायनिक कीटनाशी जैसे इमिडाक्लोप्रिड 100 एमएल प्रति एकड़ या थायोमैथकजाम 100 ग्राम या इमिडा प्लस फिपरोनिल 80 ग्राम प्रति एकड़ में से किसी एक का प्रयोग 200 लीटर पानी के साथ फसलों पर छिड़काव करें।

गन्ने में अग्रकालिका भेदक या शूट बोरर लगने की संभावना है। अतः किसान शूट बोरर प्रभावित पौधे को काटकर खेत से निकाल दें या क्लोरेंटानिलिप्रोन 150 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। गर्मी के मौसम में गन्ने के खेत में यदि पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था है, तो इस किट का प्रकोप कम होगा।

भ्रमण के दौरान यह भी पाया गया कि गेहूं की पत्तियां पीली हो रही हैं और ऊपर से सूख रही हैं। कभी- कभी पत्तियों पर आंख जैसा धब्बे दिखाई दे रहे हैं। यदि पत्ती ऊपर से सूख रही है तो गेहूं में जड़माहू की समस्या है। इसके नियंत्रण के लिए 80 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड/ एसिटामेप्रिड 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ प्रयोग करें। यदि गेहूं की पत्ती नीचे से पीली हो रही है इसमें जड़ सड़न रोग लगा है, तो इसके नियंत्रण के लिए टेबुकोनोजोल प्लस सल्फर/ हेक्साकोनोजोल 400 ग्राम/ मिलीलीटर या कार्बेंडाजिम प्लस मेंकोजेब 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। इसके प्रयोग से आंख जैसा धब्बा दिखने वाला लक्षण भी समाप्त हो जाएगा।

खेत में बोई गई फसलों में यदि किसी भी प्रकार की समस्या है, तो किसान कृषि विज्ञान केंद्र नरसिंहपुर के पादप संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. एसआर शर्मा के दूरभाष 9977244254 या विकास खंड मे वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी पर सीधे संपर्क कर सकते हैं। रोगी फसलों के नमूने भेज कर भी नियंत्रण के तरीकों से किसान अवगत हो सकते हैं।

भ्रमण के दौरान सहायक भूमि संरक्षण अधिकारी श्रीमती दीप्ति यादव, पीएस कौशल, एके श्रीवास्तव, ग्राकृविअ और किसान मौजूद थे।

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