छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुनामी देखनें को मिल रहा है। समाचार पत्र कम पीडीएफ ज्यादा चल रहा है। समाचार पत्र में खाली विज्ञापन और प्रिन्ट लाईन का कुछ पता ही नही। ये भी देखने को मिला रहा है कि कुछ लोग जिस नाम से व्हाटसप चलाते है उसी नाम से समाचार पत्र भी निकालते है खाली राष्टीय त्यौहारों का विज्ञापन भी छापते है और लाखों की वसूली करते है। कुछ लोग तो ऐसे भी है जो समाचार पत्र का संवाददाता बिलासपुर का और पैसा वसूलते है पूरे छत्तीसगढ में। अब फर्जी पत्रकारों की जांच नही होगी सच बोलनें वाले पत्रकारों की जांच होगी। क्योंकि फर्जी पत्रकारों से पुलिस प्रशासन खुश रहता है पर सच बोलनें वाले पत्रकारों से पुलिस प्रशासन नाराज रहती हैं।
झुठा बेईमान सौ दिन और ईमानदार हमेशा। हमारें मुख्यालय बैकुण्पुर में प्रिन्ट मिडिया में कुछ पत्रकार ऐसे है जिनके ऊपर झुठी शिकायते आये दिन होती रहती है। क्योकि ऐसे लिखने वाले पत्रकारों को किसी संगठन की जरूरत नहीं वो स्वयं सक्षम होते है। कुछ ऐसे लोग है जो संगठन का सहारा लेकर समाचार पत्र की काॅपियां मंगवायेगे तीस पर पैसा वसूल करेंगे दस लाख उनको ये मालूम नही कि समाचार पत्र के संचालक व स्वामी या चैनलों के मालिक सब समान है वो कभी संवाददाता के करतूतों से अवगत भी होते है जब एक समाचार पत्र के मालिक के ऊपर कोई भी संवाददाता उंगली उठाता है तो हमारे राज्य या केन्द्र से संपादको को एक होना अनिवार्य है। सभी संचालको को इस बात पर ध्यान देना चाहियें कि ऐसे गंदगी को सभी लोग मिलकर साफ कर सकते है। आज की स्थिति में 15 साल के लडके से लेकर कुछ महिलायें भी पत्रकारिता के मैदान में निकल चुकी है।
समाचार पत्र के संचालक व संपादक का पद एक सम्मानित पद है जिसको कुछ पत्रकार रोड़ पर आकर पत्रकारिता को अपमानित कर रहे है। जो कि ना ही पत्रकारिता के क्षेत्र में सराहनीय है और ना ही संतोषजनक है। दैनिक समाचार पत्रों के विज्ञापन पद पर रहकर अपनी संस्था से भी पैसा ले रहे है और अधिकारियों और कर्मचारियों से अलग से पैसा निकाल रहें है। एक व्यक्ति डबल फायदा कैसे कर रहा है इससे समाचार पत्र के ऊपर उंगली उठ रही है। आज कि स्थिति में संगठन की परिभाषा में परिर्वतन कैसे आया। संगठन दुःख सुख के रूप होता है। पर आज का संगठन दबाव का संगठन बनकर रह गया है। अधिकारी के पास जाकर एक व्यक्ति कोई बात को पेश करे तो मान्य नहीं होगा। जबकि वही बात को 15 से 20 व्यक्ति किसी अधिकारी के पास जाये तो जिसकी जरूरत नहीं है तब भी मान्य कर लिया जाता है। अब संगठन की परिभाषा यही रह गई है। और इस पर शासन और प्रशासन का ध्यान नहीं है।