बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरक्षण मामले में राज्यपाल सचिवालय को जारी नोटिस पर रोक लगा दी है. अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को नोटिस जारी करने HC के अधिकार नहीं होने के तर्क को कोर्ट ने सही माना है
राज्य सरकार और एक अधिवक्ता ने बढ़ाए गए आरक्षण पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर नहीं करने के मामले में याचिका लगाई थी. जिसपर पूर्व में HC ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी किया था. HC से जारी नोटिस को चुनौती देते हुए सचिवालय ने आवेदन पेश किया था.
सोमवार को इन दोनों याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने बहस की थी. उन्होंने तर्क दिया था कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असमति दे सकते हैं, लेकिन बिना किसी वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता.
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा था कि राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं. उनके साथ महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा भी थे. इस केस में हिमांक सलूजा की तरफ से हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट डॉ. निर्मल शुक्ला और शैलेंद्र शुक्ला ने तर्क हाईकोर्ट में रखा था. इसके बाद जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी किया था.
छत्तीसगढ़ में अब अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. मुख्यमंत्री ने लोकसेवा आरक्षण और शैक्षणिक संस्था प्रवेश में आरक्षण विधेयक सदन में पेश किया. सदन में चर्चा के पश्चात सर्वसम्मति से विधेयक पारित हुआ.