सरगुजा अंचल के बलरामपुर – रामानुजगंज जिला अंतर्गत शंकरगढ़ विकासखंड के चलगली ग्राम में अंचल की प्रसिद्ध आराध्य देवी मां महामाया विराजमान हैं। इस मंदिर में किसी प्रतिमा या मूर्ति की नहीं बल्कि माता के खड़ग और नगाड़े की पूजा रियासत काल से होती चली आ रही है।
अंबिकापुर। सरगुजा अंचल के बलरामपुर – रामानुजगंज जिला अंतर्गत शंकरगढ़ विकासखंड के चलगली ग्राम में अंचल की प्रसिद्ध आराध्य देवी मां महामाया विराजमान हैं। इस मंदिर में किसी प्रतिमा या मूर्ति की नहीं बल्कि माता के खड़ग और नगाड़े की पूजा रियासत काल से होती चली आ रही है। यहां की पूजन विधि, इतिहास और किंवदंती पर राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने राज परिवार के वर्तमान उत्तराधिकारी, पुजारी बैगा और स्थानीय लोगों से जानकारी लेकर शोध कार्य किया है।
अजय चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा अंचल में नवरात्रि के समय विभिन्ना नामों से देवी की पूजा अर्चना की जाती है। अंबिकापुर मे सरगुजा राज परिवार की कुल देवी और सरगुजा अंचल की आराध्य देवी जगत जननी मां महामाया के नाम से, सूरजपुर जिले के देवीपुर में महामाया और कुदरगढ़ में कुदरगढ़ी देवी के नाम से पूजा होती है। मंदिरों की नगरी प्रतापपुर में मां समलेश्वरी, मां महामाया और मां काली की पूजा होती है। रमकोला में ज्वालामुखी देवी और खोपा ग्राम में खोपा देव के नाम से देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। शंकरगढ़ चलगली के महामाया मंदिर में ”बड़की माई” के नाम से पूजी जाती देवी हैं। यहां देवी मां का स्वरूप नगाड़े में विराजमान है। इसलिए मंदिर का पुजारी (बैगा) मां के खड़ग और नगाड़े की पूजा विधि विधान से राज परिवार के तत्कालीन उत्तराधिकारी से करावाता है।
मां महामाया कुलदेवी व आराघ्य देवी हैं- मां महामाया सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर चलगली महामाया मंदिर में राज परिवार की कुलदेवी और आदिवासी अंचल की आराघ्य देवी के रूप में पूजित हैं। यहां प्रत्येक वर्ष क्वार नवरात्रि के अवसर पर पंचमी तिथि को शंकरगढ़ राज परिवार के वर्तमान उत्तराधिकारी के द्वारा विशेष पूजा की जाती है। शंकरगढ़ राज परिवार के वर्तमान उत्तराधिकारी व भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंहदेव ने बताया कि यहां की महामाया हमारी कुलदेवी के रूप में पूजित हैं। इसलिए प्रत्येक क्वांर नवरात्रि की पंचमी को हमारे परिवार के द्वारा विशेष पूजा और नौ कन्याओं को भोज कराया जाता है।
पंचमी को देवी स्वरूप नगाड़े का कलेवर बदला जाता है- प्रायः देखा जाता है कि देवी मंदिरों में किसी मूर्ति या प्रतिमा की पूजा होती है किंतु चलगली के महामाया मंदिर में केवल मां के खड़ग और नगाड़े की पूजा होती है। इस संबंध में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि देवी मां का स्वरूप नगाड़े में विराजमान है, इसलिए नगाड़े और मां की खड़ग की विशेष पूजा होती है। शारदीय नवरात्रि में प्रतिवर्ष पंचमी की पूजन के दिन सबसे पहले घसिया जनजति के नगाड़ची के द्वारा देवी स्वरूप नगाड़े का कलेवर बदला जाता है जिसमें मंदिर का पुजारी बैगा और राजपरिवार के उत्तराधिकारी के साथ परिवार की अपेक्षित लोग शामिल रहते हैं। नगाड़ची के द्वारा कलेवर बदलने के बाद सबसे पहले नगाड़ची के घर पर ही बैगा पूजा करावाता है। इसके बाद पहली बार अपने घर पर ही नगाड़ची डंका बजाता है। बाजे गाजे के साथ महामाया मंदिर में ला कर देवी स्वरूप नगाड़े को स्थापित कर दिया जाता है। बली पूजा के बाद नगाड़ची द्वारा दूसरी बार नगाड़े को पुनः बजाया जाता है। इस तरह यह नगाड़ा वर्ष में केवल दो बार ही बजाया जाता है।
प्रथम शक्ति पूजा होती है पंचमी को- महामाया मंदिर से कुछ दूरी पर बस्ती के मध्य में देवी स्वरूप एक प्रतिमा की शक्ति पूजा बैगा द्वारा राज परिवार की उत्तराधिकारी से विधि विधान से कराई जाती है। इसके बाद शक्ति स्थल का ध्वज बदल दिया जाता है। बैगा राजेन्द्र सिंह ने बताया कि यह शक्ति पूजा मां के मंदिर का पट खोलने और बलि पूजा की अनुमति के लिए होती है। शक्ति पूजा स्थल पर पूजन के बाद सभी लोग गाजे – बाजे के साथ महामाया मंदिर आते है। और मंदिर का पट खोला जाता है। नगाड़े और खडग की पूजा अर्चना के बाद पट खेलने की प्रथम बलि दी जाती है। इसके बाद नौ कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर पूजा की जाती है और उन्हें भोज कराया जाता है। फिर आम श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खूल जाता है। और पूजा प्रारंभ होती है।इसके बाद पंचमी के दिन की पूजा बंद हो जाती है। बैगा राजेंद्र सिंह ने बताया कि शक्ति पूजा स्थल पर दूध,जल,अक्षत आदि से पूजा कर पट खोलने की अनुमति मांगी जाती है। इस मंदिर में खैरवार जाति का बैगा ही पूजा कराता है।
धार्मिक आस्था के साथ पौराणिक महत्व है-अजय चतुर्वेदी शोधकर्ता बा शिक्षक अजय चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा अंचल के प्रमुख आराध्य मां महामाया मंदिर अंबिकापुर अन्य मंदिरों मंदिरों की आस्था लोगों से जुड़ी है। दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना करते हैं। धार्मिक आस्था के साथ पौराणिक महत्त्व भी इन स्थलों का है। इन स्थलों के इतिहास को हर किसी को जानना चाहिए। खासकर नई पीढ़ी को इससे अवगत कराना जरूरी है। इस कारण मैंने अपने शोध में इन सभी का जिक्र किया है ताकि नई पीढ़ी के बच्चे इसका अध्ययन कर सकें।