छत्तीसगढ़ में डिप्टी रेन्जरों को नियुक्त किया जा रहा है, लोगो में चरचा है कि पैसा देकर डिप्टी रेन्जरों की नियुक्ति की गई है। और सोचने वाली बात है कि वित्त प्रभार का क्राइट एरिया जो रेन्जरों का होता है उतना ही डिप्टी रेन्जरों को कैसे दिया गया ? डिप्टी रेन्जर जंगल में न जाकर वह अपने बाबुओं से बिलांे की तैयारी कराते रहते है। यह सोचने वाली बात है जो बिल तैयार किये जाते हैं वह सभी लोग वन विभाग के अधिकारी भी जानते हैं, यहां तक कि वन विभाग की जमीन को जियों कम्पनी किसके आदेश किसके निर्देश पर वन विभाग की जमीन को खोद कर केबिल बिछाने की कार्य कर रही है, जिसमें वन विभाग के जमीन में वृक्ष लगे हुए हरे भरे पेड़-पौधे भी काट दिये जा रहे है। और बगल जमीन में जो पौधे लगे हुए है उनकी जड़े हिला दी जा रही है। क्योंकि वन विभाग के डिएफओ व रेन्जर की मिली-भगत से जियों कम्पनी के ठेकेदारों से लम्बी रकम की सौदा करके मौखिक स्वीकृति दी जाती है। सोचने वाली बात है वन विभाग खाली कागज पर जिवित है 75 0/0 वन विभाग समाप्त हो चुका है अब जीव-जन्तु का पलायन गावं की ओर चालू हो गया है, जिसकी विस्तार से जानकारी वर्तमान मुख्य प्रधान संरक्षक को भी मौखिक रूप से बताया जा चुका है, क्योंकि डिप्टी रेन्जर पैसा को देखकर लोगो से सिधे मुह बात नही करते है। क्योंकि उनका कहना रहता है कि हम उपर पैसा देकर आये है तो गलत काम तो करना पड़ेगा। कुछ अथित-कथित नये पिढ़ी के पत्रकार जो कि अपने को सम्पादक व लोगो से पैसा लेने के ढंग बदल दिये है जैसे पैसा लेना है तो अपने भाभी के खाते में व अपने परिचित व रिश्तेदारों के खातों में पेसा लेते हैं, जिसका प्रमाण कार्यालय में दस्तावेज है। सच्चाई बोलने से मुकर जातें है। जब उनको पैसा मिल जाये तो डिप्टी रेन्जर के फेबर मे समाचार लगना चालू हो जाता है और पैसा न मिलने पर बिलासपुर के जंगल के वृक्ष कटे हुए उसका फोटो सुरजपुर या बैकुण्ठपुर मे दर्शा दिया जाता है। क्योंकि वन विभाग के कारण नई पिढ़ी के पत्रकार जब देखो तब रेन्ज ऑफिस या डिएफओ के ऑफिस के पास मंडराते रहते है। जब ऐसा नही हुआ तो पैसा कम देने पर सूचना के अधिकार का भी उपयोग कर लेते है। क्योंकि वन विभाग एक मलाई दार विभाग है सभी की नजर वन विभाग पर ही टिकी रहती है। जबकि जो बाबू चेक बनाता है व बिल पास करता है वह डिएफओं तक जाता है तब तक जैसे बरसात का पानी गिरता है वैसे पैसो की बौछार होती है। अब देखने वाली बात यह है कि जंगल की जीव-जन्तुओ का रहना दुसवार हो गया है अब उनको जशपुर से खदेढ़े तो रायगढ़ और रायगढ़ से खदेड़े गये तो कोरबा इसी तरह सभी जंगलों में जानवर यहा। वहा खदेड़े जाते है। क्योंकि डिप्टी रेन्जरों को जंगल से कोई मतलब नही क्योंकि इनको मौका मिला है रेन्जरी का तो मौका देखकर मार रहें है चौका। सरकार ऐसे लोगो पर ध्यान दे कि जो डिप्टी रेन्जर अपने पद का दुरूपयोग करके शासन के पैसे का दोहन कर रहे है। समय आने पर डिप्टी रेन्जरों के नाम का भी पर्दाफाश किया जा सकता है।
वन – वभाग उजड़ रहा है और डिप्टी रेन्जर करोड़ों की आसामी बन रहे है।
वन - वभाग उजड़ रहा है और डिप्टी रेन्जर करोड़ों की आसामी बन रहे है।