बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने गुरुवार को परसा कोल ब्लाक भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान आधी रात की गई पेड़ों की कटाई पर कड़ा रुख अपनाया और इस पर राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की। गौरतलब है कि याचिकाओं में लगाए गए स्टे आवेदन और संशोधन आवेदन पर बहस होनी थी। पर चीफ जस्टिस की खण्डपीठ जहां सामान्य रूप से यह मामले सुने जाते हैं, उनके उपलब्ध न होने के कारण जनहित याचिका पर जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके. चन्द्रवंशी के डिवीजन बेंच में सुनवाई के लिए भेजा गया।
सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव और अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने पक्ष रखते हुये बताया कि वैसे तो याचिकाओं में कोल बेयरिंग एक्ट को भी चुनौती दी गई है। परन्तु उस एक्ट को संवैधानिक मानकर भी यदि चला जाये तो अधिग्रहित की गई जमीन किसी निजी कंपनी को खनन के लिये नहीं दी जा सकती।
अधिवक्ताओं ने आगे बताया कि हस्तगत मामले में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के नाम पर भूमि अधिग्रहण कर अडानी की स्वामित्व वाली कंपनी राजस्थान कॉलरी को भूमि सौपी जा रही है। यह स्वयं कोल बेयरिंग एक्ट के प्रविधानो एवं सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये कोल ब्लॉक जजमेंट के विरूद्ध है। अतः परसा कोल ब्लॉक से संबंधित कोई भी कार्य आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इस कारण पेड़ों की कटाई पर भी तुरंत रोक लगनी चाहिये ।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम और राजस्थान कालरी (अडानी) की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता निर्मल शुक्ला ने कहा कि पेड़ों की कटाई कम्पनी ने नहीं वन विभाग ने की है और खदान को सभी तरह की वन पर्यावरण अनुमति प्राप्त है। इस स्तर पर खण्डपीठ ने यह पूछा कि यदि भूमि अधिग्रहण निजी कंपनी के हाथ जाने के कारण अवैध साबित होता है, तो इन कटे हुए पेड़ों को क्या पुर्नजीवित किया जा सकता है।
खण्डपीठ ने राज्य सरकार को पेड़ों की कटाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश के साथ स्टे आवेदन पर अगली सुनवाई 4 मई तय की गई है। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता सौरभ साहू रजनी सोरेन, सौम्या शर्मा, शैलेन्द्र शुक्ला, एच. एस अहुलवालिया आदि उपस्थित थे।