इस साल पूर्णिमा 19 अक्टूबर को है। लेकिन हिंदू पंचांग में तारीख को लेकर भेद है। इस लिए कई स्थानों पर 20 अक्टूबर को भी ये त्योहार मनाया जाएगा। शरद पूर्णिमा को कोजागरी और राज पू्र्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन रात्रि जागरण और चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाकर खाने का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि माता लक्ष्मी धरती पर आती है। माना जाता है कि इस रात को लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती है। वह सुख-सुविधाओं में बढ़ोतरी होती है। वहीं इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है।
शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर शाम 07 बजे से शुरू होकर 20 अक्टूबर रात्रि 08 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी।
महत्व
शरद पूर्णिमा के बाद सर्दी का अहसास होने लगता है।
मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से संपूर्ण होकर पृथ्वी पर अपनी अमृत वर्षा करता है।
रात खुले आसमान में खीर बनाकर रखने व दूसरे दिन उसके सेवन किया जाता है। कहा जाता है कि खीर अमृत समान होती है।
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की उपासना भी फलदायक होती है। ब्रह्मकमल भी इसी रात खिलता है।
शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है। इसके पीछे वैज्ञानिक है कि दूध में लैक्टिक एसिड होता है। यह चांद की तेज रोशनी में दूध के बैक्टिरिया को बढ़ाता है। वह चांदी के बर्तन में रोग- प्रतिरोधक बढ़ाने की क्षमता होती है। इस लिए खीर को चांदी के बर्तन में रखें। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी सबसे तेज होती है। इस कारण खुले आसमान में खीर रख उसका सेवन करना सेहत के लिए फायदेमंद है।