भोपाल। पानी की कमी से जूझते लोगों के लिए भोपाल की एक रहवासी सोसायटी उदाहरण बन सकती है। सोसायटी में पानी के स्रोत के तौर पर एक ट्यूबवेल था। आबादी बढ़ने के साथ ही ट्यूबवेल ने साथ छोड़ दिया तो रहवासियों ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग से उसे पानी लौटाना शुरू किया। आज आसपास के क्षेत्रों में पानी का गंभीर संकट होने के बावजूद इस सोसायटी के पास इतना पानी है कि गर्मी में दूसरों के गले भी तर हो रहे हैं। गुलमोहर कालोनी क्षेत्र में स्टर्लिंग सफायर हाउसिंग सोसायटी में वर्ष 2000 में ट्यूबवेल सूख गया। रहवासियों ने बारिश के पानी को ट्यूबवेल में उतारने की व्यवस्था की। तत्काल फायदा नहीं हुआ। वर्ष 2004 तक उन्हें पानी खरीदकर इस्तेमाल करना पड़ा। इस पर करीब साढ़े 11 लाख रुपये वार्षिक खर्च आया। बाद में नगर निगम से नल कनेक्शन लिए तो खर्च घटकर करीब 35 हजार हो गया।
वर्ष 2010-11 में नगर निगम ने जलकर की दर बढ़ाई तो रहवासियों पर 93 हजार से अधिक का बोझ आया। इस दौरान रहवासियों ने ट्यूबवेल की जांच की तो पता चला कि बारिश का पानी लगातार जाने के कारण उसका जलस्तर बढ़ गया है। तब से अब तक ट्यूबवेल का उपयोग किया जा रहा है। शुरू में ट्यूबवेल का जलस्तर 282 फीट पर था। आज यह स्तर 51 फीट पर आ गया है। इस वर्ष गर्मी में यह जलस्तर 86 फीट से नीचे नहीं गया। रेन वाटर हार्वेस्टिंग केंद्रीय भूजल बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राकेश सिंह की देखरेख में यह व्यवस्था की गई। ट्यूबवेल में लगाई मोटर की ऊंचाई बढ़ाकर रहवासी बिजली बिल में भी कमी ला चुके हैं। बिजली बिल और अन्य खर्च मिलाकर आज करीब 55 हजार स्र्पये वार्षिक का भार रहवासियों पर आ रहा है। बारिश के पानी को ट्यूबवेल तक पहुंचाने में लगभग 25 हजार स्र्पये का खर्च आया था। रहवासियों ने बताया कि इस साल गर्मी में आसपास की सभी रहवासी सोसायटियों में पानी के टैंकर आए, लेकिन हमारे यहां गर्मी में भी भरपूर पानी रहा।