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✍ 200 साल पुराना बरगद पेंड़ आज भी प्राणवायु आक्सीजन का संचार कर लोगों के स्वास्थ्य का सजग प्रहर…….

इसमें सभी देवी देवाताओं का वास होता है

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कोरबा । शहर के सीएसईबी चौक से सीतामढ़ी तक प्रायः प्रत्येक चौक चौराहों में बरगद अथवा पीपल के वृक्ष देखने को मिल जाएंगे। तेजी से विस्तार ले रहे औद्योगिक शहर के प्रदूषित वातारण में पुराना बस स्टैंड से रानी धनराज कुंवर मार्ग में स्थित 200 साल पुराना बरगद पेंड़ आज भी प्राणवायु आक्सीजन का संचार कर लोगों के स्वास्थ्य का सजग प्रहरी साबित हो रहा है। इसकी आज भी उसी आस्था और विश्वास से पूजा होती है जितनी कल तक होती थी। ज्येष्ठ माह की अमावस्या होने से सुहागिन पति की दीर्घायु के लिए पूजा करेंगी।

भारतीय संस्कृति में वट वृक्ष की पूजा कोरोना काल में और भी प्रासंगिक हो जाता है। वजह यह है कि महामारी की चरम सीमा में आक्सीजन के लिए जद्दोजहद करते हुए मरीजों को सभी ने देखा है। आक्सीजन प्रदान करने वाले पेड़ ना होते तो शहर में कोयले की काले धुंए और राखड़ की धूल कब की परास्त कर चुकी होती। शहर पुराना बस स्टेंड स्थिति बरगद का पेंड़ कोरबा के गांव से शहर में तब्दील होने की साक्षी है। यहां रहने वाले सुनील जैन की माने तो बरगद बौर पीपल का पेड़ यहां तब से है जब कोरबा शहर में तब्दील नहीं हुआ था। यह 200 से भी अधिक साल पुराना है। वाहनों के उड़ते धुंए और शहर की औद्योगिक प्रदूषण के बीच शहर में इस प्राचाीन वृक्ष का होना क्षेत्र के रहवासियों के लिए वरदान जैसा है। गांधी चौक में स्थिति प्राचीन बरगद पेड़ के बारे में यहां के निवासी मूलचंद शास्त्री का कहना है कि वट वृक्ष हमारे आस्था का प्रतीक है। इसमें सभी देवी देवाताओं का वास होता है। कोविड अस्पताल में प्रभारी डा एलएस ध्रुवे का कहना है कि बरगद और पीपल आक्सीजन के सर्वाधिक स्त्रोत है। इन पेड़ों के अस्तित्व से प्रदूषित वातावारण भी आक्सीकृत रहता है।

पुराना बस स्टैंड निवासी सुनील जैन का यह भी कहना है शहर बनने के पूरा कोरबा जंगल से आच्छादित था। इनमें काफी पेड़ बसाहट की बलि चढ़ गए। यह दुर्भाग्य की बात है कि शहर में अब भी जो पुराने पेड़ बच गए हैं उनके साखों को आवास और दुकान को बचाने के लिए लिए काटे जा रहे हैं। इस पर रोक लगना जरूरी है।

पूजन में नहीं ग्रहण का असर

वट सावित्री पूजा का योग गुरूवार के दिन उचित है। ज्योतिषाचार्य मूल चंद शास्त्री की माने तो कांकर्णी सूर्य ग्रहण के कारण कई लोगों ने नौ जून को भी पूजा कर ली। बहरहाल सूर्य ग्रहण भारत में कहीं भी दिखाई नहीं देगा। ऐसे में 10 जून को भी पूजा संपूर्ण फलदायी होगा। उन्होने बताया कि वट सावित्री पूजा महिलाएं सुहाग की दीर्घायु के लिए करती है। विधिविधान से इस व्रत को करने सुहाग के साथ संतान, एश्वर्य, संपत्ति की सुरक्षा होती है।

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