ज्योतिष विद्या क्या है? इसके अध्ययन से क्या जाना जा सकता है. वेदान्त में वर्णित ज्योतिष – फलित ज्योतिष .ज्योतिषीय विश्लेषण के माध्यम से भूगोल, देशों, प्राकृतिक घटनाओं के व्यापक अध्ययन. –
इस विद्या को किसी धर्म, निष्ठा, मत से जोड़ना मूर्खता है. ग्रहों या समय का प्रभाव सब जन्मे पर है इसमें ‘हमारा” इष्ट कुछ नहीं करता. यह समय काल का सूक्ष्म अध्ययन है.
भारत का प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य वैदिक साहित्य है। वैदिक कालीन भारतीय यज्ञ किया करते थे। यज्ञों के विशिष्ट फल प्राप्त करने के लिये उन्हें निर्धारित समय पर करना आवश्यक था इसलिये वैदिककाल से ही भारतीयों ने वेधों द्वारा सूर्य और चंद्रमा की स्थितियों से काल का ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया।
यजुर्वेद काल में भारतीयों ने मासों के 12 नाम मधु, माधव, शुक्र, शुचि, नमस्, नमस्य, इष, ऊर्ज, सहस्र, तपस् तथा तपस्य रखे थे। बाद में यही पूर्णिमा में चंद्रमा के नक्षत्र के आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन हो गए। यजुर्वेद में नक्षत्रों की पूरी संख्या तथा उनकी अधिष्टात्री देवताओं के नाम भी मिलते हैं। यजुर्वेद में तिथि तथा पक्षों, उत्तर तथा दक्षिण अयन और विषुव दिन का भी संदर्भ है।
उदाहरण : प्राचीन संस्कृत ग्रंथो में कई स्थानों पर ग्रहों की स्थिति, ग्रहयुति, ग्रहयुद्ध आदि का वर्णन है। इससे इतना स्पष्ट है कि भारतवासी ग्रहों के वेध तथा उनकी स्थिति से परिचित थे।
आकलन या अध्ययन कैसे किया जाए?
पूरे वृत्त की परिधि 360 मान ली जाती है। इसका 360 वाँ भाग एक अंश, का 60वाँ भाग एक कला, कला का 60वाँ भाग एक विकला, एक विकला का 60वाँ भाग एक प्रतिविकला होता है। 30 अंश की एक राशि होती है। ग्रहों की गणना के लिये क्रांतिवृत्त के, जिसमें सूर्य भ्रमण करता दिखलाई देता है, 12 भाग माने जाते हैं। इन भागों को मेष, वृष आदि राशियों के नाम से पुकारा जाता है। ग्रह की स्थिति बतलाने के लिये मेषादि से लेकर ग्रह के राशि, अंग, कला, तथा विकला बता दिए जाते हैं। यह ग्रह का भोगांश होता है। सिद्धांत ग्रंथों में प्राय: एक वृत्तचतुर्थांश (90 चाप के 24 भाग करके उसकी ज्याएँ तथा कोटिज्याएँ निकाली रहती है। इनका मान कलात्मक रहता है। 90 के चाप की ज्या वृहद्वृत्त का अर्धव्यास होती है, जिसे त्रिज्या कहते हैं। इसको निम्नलिखित सूत्र से निकालते हैं : परिधि = (३९२७ / १२५०) x व्यास।
भारतीय ज्योतिष प्रणाली से बनाए तिथिपत्र को पंचांग कहते हैं। पंचांग के पाँच अंग हैं : तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण। पंचांग में इनके अतिरिक्त दैनिक लगन स्पष्ट, ग्रहचार, ग्रहों के सूर्य सान्निध्य से उदय, अस्त और चंद्रोदयास्त रहते हैं। इनके अतिरिक्त इनमें विविध मुहूर्त तथा धार्मिक पर्व हैं।
ज्योतिष एक विज्ञान है जैसे एस्ट्रोनॉमी या बॉटनी. ज्योतिष के दो पहलु हैं. एक के हम ग्रहों के चक्रों के अंशों में कुछ ऐसे समय पर आते हैं जो बहुत संवेदनशील होते हैं जैसे चन्द्रमा या सूर्य जब वृषभ के ३ अंश पर है वह समय – टर्न या मोड़ का होता है. दूसरे दो ग्रहों का आपस में जो चक्र होता है ३६० अंश का वह जब ९०, १२०, या १८० या ० डिग्री या अंश पर या उसके आसपास एक संवेदन शील समय उत्पन्न करते हैं.
गृह, सूर्य और चन्द्र -हमारे संसार में सदैव चलते हैं. भारत मूल के ज्योतिष वैदिक ज्योतिष में चन्द्र कला की राशिओं को मानकर चलते हैं, दूसरा ज्योतिष ३६० अंश / डिग्री सूर्य के अनुसार चलता है. पर दोनों में चन्द्र और सूर्य के कुछ अंशों के अंतर को छोड़कर शेष सब एक है.
ज्योतिष विद्या के अनुसार हम इन ३६० अंशों का अध्ययन करते हैं.हम देखते हैं के सूर्य या चन्द्र या शुक्र या मंगल के कुछ अंश अति संवेदनशील हैं और कुछ अंश में कुछ विशिष्ट घटनाएं घटित होती हैं. चन्द्र कल २९.४ दिन की, शुक्र की २२५ दिन की और मंगल इसके बाद जो बड़े गृह हैं जैसे शनि, जुपिटर या वृहस्पति या गुरु, यूरेनस [अरुण] नेप्ट्यून [वरुण] , प्लूटो [यम ] उनके ग्रहों के चक्र की अवधि पूर्ण होने पर पृथ्वी और उसकी प्रकृति, पशु, जीव, मनुष्य पर कुछ अंतर होता है.
जैसे शुक्र २२५ दिन हैं, उन्हें १२ राशि में विभाजित कर लिया जाता है. शुक्र लगभग १९ दिन के बाद राशि बदलता है. उदाहरण : लेखन समय में शुक्र ट्रॉपिकल पद्धति के अनुसार १२ अंश मिथुन में हैं. इसका अर्थ हर जन्मे सत्ता के लिए भिन्न होगा.दूसरी और अभी सूर्य भी १३ अंश मिथुन में हैं तो इसका भी प्रभाव भिन्न होगा.
प्रभाव ?
प्रभाव बाजार, मनुष्य, जीव, उद्योग, संचार समाजिक व्यवस्था से लेकर व्यक्ति की सोच पर भी होता है. चन्द्र की २९.४ दिन की अवधि में लगभग हर २.४ दिन के बाद राशि बदलती है और इसका प्रभाव पृथ्वी के जीवों के अंतर्मन और शरीर की प्रक्रियायों पर पड़ता है. इसकी अवधि स्त्री के मासिक धर्म जितनी है. प्राचीन काल से प्राचीन भारत, बेबीलोनिया और उसके पूर्व सभ्यतायों में सूर्य और बुध की सामयिक चक्र जो वर्ष में ३ से ४ बार होती है से कुछ अनाज जैसे गेहूँ की फसल का अनुमान लगाया जाता रहा है. इसी तरह से लगभग हर फसल का किसी न किसी गृह या ग्रहों से सम्बन्ध होने के कारण उनके फसल उत्पाद का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है.
दूसरे गृह अपनी सामान्य चाल से कभी कभी हटकर वक्री होते हैं या हमें लगता है के रुक गए उस वक्री अवस्था का भी हम पर प्रभाव पड़ता है जैसे बुध जो सामान्य व्यापार और संचार को प्रभावित करता है के या आर एक्स [अभी भी यूरोप में फार्मेसी या केमिस्ट विक्रेता आर एक्स Rx का प्रतीक प्रयोग करते हैं. ] बुध २१ दिन के लिए वर्ष में ३ या ४ बार वक्री होता है. इस काल में किये गए कॉन्ट्रैक्ट अक्सर विवाद में जाते हैं. इसीलिए विवाह, बड़ी चीज़ों का क्रय अदि इस दौरान करना अक्सर झगड़ों या विवादों में समाप्त होता है. मैंने एक अध्ययन किया और देखा के ९५%
विवाह या व्यापार बुध या शुक्र के वक्री के समय हुए उनमे झगडे या विवाद हुए.
वरुण के अध्ययन से वर्षा का होना या न होना भी जाना जा सकता है.
ज्योतिषीय विश्लेषण के माध्यम से भूगोल, देशों, प्राकृतिक घटनाओं के व्यापक अध्ययन
वैदिक ज्योतिष न केवल हमारे पारंपरिक और शास्त्रीय ज्ञान के मुख्य विषयों में से एक है, लेकिन यह अनुशासन, हमें मानव जीवन में और ब्रह्मांड में हो रही घटनाओं का समय ज्ञान कराता है. वेदांग ज्योतिष (काल ई पू 1200); पंचसिद्धांतिका में वर्णित पाँच ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथ जो हजारों वर्षो से चले आ रहे हैं कुछ ऐसे भी ज्योतिष ग्रंथकार हुए हैं जिनके वाक्य अर्वाचीन ग्रंथों में उद्धृत हैं, किंतु उनके ग्रंथ नहीं मिलते। उनमें मुख्य हैं नारद, गर्ग, पराशर, लाट, विजयानंदि, श्रीषेण, विष्णुचंद आदि। आक्रमणकारियों के भारत में आने के बाद कई हजार बहुमूल्य ग्रन्थ और अध्ययन जला दिए गए और नष्ट हो गए.
भारत में ज्योतिष का मौलिक अनुसंधान १५०० में आक्र्म्नकारियो के आने बाद लगभग रुक गया, आवश्यकता है के इस पर अध्ययन हो.
वेदान्त में वर्णित ज्योतिष – फलित ज्योतिष
भारतीय ज्योतिष के प्राचीन प्रारुप को देखा जाए तो वहां फलित ज्योतिष का भाग बहुत छोटा है। वेदान्त में वर्णित ज्योतिष खण्ड वास्तव में एस्ट्रॉनमी है। प्राचीन भारत में ज्योतिष का अर्थ ग्रहों और नक्षत्रों की चाल का अध्ययन करने के लिए था। यानि ब्रह्माण्ड के बारे में अध्ययन। कालान्तर में फलित ज्योतिष के समावेश के चलते ज्योतिष शब्द के मायने बदल गए और अब इसे लोगों का भाग्य देखने वाली विद्या समझा जाता है। फलित ज्योतिष में जहां ग्रह नक्षत्रों की चाल का इतना सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है कि एक हजार साल बाद इन आकाशीय पिण्डों की क्या स्थिति होगी इस बारे में सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है। विशुद्ध गणितीय फार्मूलों के आधार पर। जहां तक फलित की बात है प्राचीन भारतीय पुस्तकों में कई जगह इसके चकित कर देने वाले संकेत मात्र मिलते है। जैसे नारद पुराण। कहते हैं शिव ने नारद को चौरासी लाख सूत्र बताए। इनमें से अधिकांश नष्ट हो गए और अब महज चौरासी सूत्र बचे हैं। इसके अलावा रुद्र अष्टाध्यायी में पांचवे अध्याय में ग्रहों के दुष्प्रभाव और इनसे बचाव का विश्लेषण सूत्रों में ही दिया गया है। इसके अलावा ब्रह्मा को फलित ज्योतिष का जनक माना गया है।
भारतीय ज्योतिष के संदर्भ में कई प्रकार की भ्रांतियां और अंधविश्वास जनसाधारण में व्याप्त हैं। मूल पुस्तकों में इस प्रकार की धारणाओं को कोई स्थान नहीं दिया गया है लेकिन बाद में फलित ज्योतिष के विकास के साथ भ्रांतियां और अंधविश्वास जुड़ते गए।
संयुति काल – समय जो लगातार दो समान विन्यास के बीच, रूप में पृथ्वी से देखा जाता है.
नाक्षत्र अवधि – एक ग्रह की कक्षीय अवधि – सूर्य की एक पूर्ण कक्षा पूरा करने के लिए समय जो एक ग्रह लेता है
मानव इतिहास को समझने के लिए इन नक्षत्र अवधिओं और चक्रों का अध्ययन किया जा सकता है. उदाहरण शनि की २९.५ वर्ष की अवधि, को १२ भागों में बांटे. शनि जिस राशि में होगा , उस राशि के क्षेत्र, मनुष्य या सत्ता उसके प्रभाव में होंगे. हर २८.७ वर्ष उपरान्त मनुष्य के जीवन में कुछ परिवर्तन होंगे। हर राशि जो लगभग हर ढाई वर्ष बाद बदलती है उसका प्रभाव हर मनुष्य पर अलग होता है. उदाहरण : दिसंबर २०१५ से ट्रॉपिकल समय अनुसार शनि धनुराशि में है तो जिनका सूर्य धनु या मिथुन में है उनपर इसका गुप्त प्रभाव रहेगा. इन अवधियों और राशि के विश्लेषण से हम भूखण्डों के आर्थिक, सामाजिक या भूगोलीय घटनाओं को जान सकते हैं. नक्षत्र अवधि का अधिक महत्व है!
ग्रह संयुति अवधि (दिन) – नक्षत्र अवधि
बुध – मरकरी 116 दिन —– 88 दिन
शुक्र – वीनस 584 दिन —– 225 दिन
पृथ्वी – 1.0 वर्ष —- ३६५ दिन
मंगल मार्स ग्रह 780 दिन —– 1.9 वर्ष
बृहस्पति जुपिटर 399 दिन — 11.9 वर्ष
शनि सैटर्न 378 दिन —- 29.5 वर्ष
अरुण यूरेनस 370 दिन —- 84.0 वर्ष
वरुण नेपच्यून 368 दिन —-164.8 वर्ष
यम प्लूटो 367 दिन —– 248.5 वर्ष
आगे पढ़ें –> ज्योतिष विद्या क्या है? । क्या हमारी कुंडली में बैठे हुए ग्रहों का हमारे जीवन पर असर होता है। भाग्य या अमुक गृह की शुभता के लिए आराध्या पूजा, इबादत, या मंत्र जप करना चाहिए या नहीं?