रायपुर।बस्तर की कला-संस्कृति को संजोने वाली साड़ियों का रायपुर में भारी क्रेज है। हाथकरघा संघ बस्तर की कला-संस्कृति को संरक्षित एवं संवर्धित करने हर संभव प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में बस्तर जिले की बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को हाथकरघा के माध्यम से वस्त्रों में कलाकृति के रूप में अभिव्यक्त किया जा रहा है। जिले के महात्मा गांधी बुनकर सहकारी समिति, बस्तर के बुनकरों द्वारा परंपरागत ट्राइबल साड़ियों और विभिन्न रंगों के ट्राइबल आर्ट दुपट्टों का भी निर्माण किया जा रहा है।
बस्तर जिले के तोकापाल ब्लाक के ग्राम-कोयपाल में प्राकृतिक रंगों (आल कलर) से रंगे सूती ट्राइबल आर्ट साड़ियां तैयार की जा रही हैं, जो संपूर्ण छत्तीसगढ़ में अद्वितीय हैं। बुनकरों का कहना है कि इस साड़ी की अपनी एक अलग पहचान है।
हाथकरघा संघ द्वारा इन साड़ियों और दुपट्टे को राजधानी रायपुर स्थित बिलासा शोरूम द्वारा विक्रय किया जा रहा है। हाथकरघा संघ द्वारा न सिर्फ बस्तर की संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित किए जाने का प्रयास किया जा रहे हैं, बल्कि इनकी स्थानीय बाजारों से अलग इनकी आमदनी में भी चार-पांच गुना वृद्धि हुई है। साड़ी बनाने वाले बुनकरों को ट्राइबल डिजाइन के आधार पर 4,000 से 5,000 रुपये प्रति साड़ी बुनाई मजदूरी दी जा रही है, जबकि ट्राइबल आर्ट दुपट्टे, स्टोल, गमछे इत्यादि के लिए प्रति नग 400-500 रुपये बुनाई मजदूरी है। पिछले दो माह में ट्राइबल आर्ट साड़ियों एवं दुपट्टे के लिए बस्तर समिति द्वारा कुल एक लाख 60 हजार की मजदूरी का भुगतान किया गया है।
बस्तर जिला हाथकरघा के सहायक संचालक ने बताया कि आगामी योजना के तहत जिले के समस्त बुनकर सोसायटियों ने ट्राइबल आर्ट साड़ियों, दुपट्टे, गमछे, शर्टिंग आदि का निर्माण प्रारम्भ किया जाएगा। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक रंगों से धागा रंगाई करने की सुविधा उपलब्ध भी सुनिश्चित की जानी है। इसके लिए ग्रामोद्योग विभाग एवं राज्य शासन के सहयोग से बस्तर की विलुप्त हो रही परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है।