Home घटना ✍ अंबिकापुर: जेल से रिहा होते ही खरीदा स्मार्टफोन…….

✍ अंबिकापुर: जेल से रिहा होते ही खरीदा स्मार्टफोन…….

नानी के यहां रहकर बतौली में पढ़ने वाली बेटी की कक्षा कोरोना संक्रमण के कारण ऑनलाइन चल रही है, इसके लिए उसे मोबाइल की जरूरत पड़ेगी

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अंबिकापुर। सुधार गृह के रूप में परिवर्तित हो रहे केंद्रीय जेल अंबिकापुर में कैदियों को रोजगार से जोड़ा गया है। जेल में समय-समय पर विशेषज्ञों के व्याख्यान से इनके जीवन में बदलाव भी देखने को मिलता है। हत्या के मामले आजीवन कारावास की सजा काटने के 15 साल बाद जेल से घर पहुंचे आनंद नागेश एक प्रेरक उदाहरण हैं। अच्छे व्यवहार से प्रभावित होकर जेल अधीक्षक द्वारा की गई सजा माफी की अनुशंसा में उनकी रिहाई हुई। आठवीं पास आनंद को जेल में रहते शिक्षा के महत्व का पता चल चुका था। घर पहुंचने पर जब उसे पता चला कि बेटी की ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है और उसके लिए मोबाइल खरीदना जरूरी है, तो जेल से रिहा होते समय मिली पारिश्रमिक की राशि को 12वीं कक्षा में पढ़ रही बेटी को मोबाइल खरीदने दे दिया, ताकि उसकी पढ़ाई अवरुद्घ न हो। जेल जाने के पहले वह दुधमुंही बेटी को छोड़ गया था।

दरिमा थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम आमदरहा निवासी आनंद उर्फ गुड्डू नागेश पिता नोहर साय (38) को बड़े पिता की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई थी। इसके बाद वह 15 साल साढ़े चार माह जेल की सलाखों के पीछे गुजारा। विवाह के बाद युवावस्था में ही अनजाने में बड़े पिता की हत्या के लगे आरोप के बीच आजीवन कारावास की सजा से वह विचलित हो गया और पत्नी के साथ छोटी बच्ची के भविष्य की चिंता उसे सताने लगी। बेटी की पढ़ाई की बात आई तो उसे शिक्षित करने का जिम्मा पत्नी बालमति नागेश को दिया। बच्ची की पढ़ाई में किसी प्रकार का अवरोध न हो इसका ध्यान वह जेल से रखता था। 15 वर्ष की अवधि में वह बेटी की पढ़ाई के लिए 30 हजार रुपये से अधिक पत्नी को दिया। जेल में रहते आनंद ने बागवानी व बढ़ईगीरी का काम सीखा, इसके एवज में उसे जो पारिश्रमिक मिलता उसका कुछ अंश बेटी की पढ़ाई के लिए पत्नी के हाथों समय-समय पर देता रहा। 15 साल साढ़े चार माह बाद जब वह जेल से बाहर आया तो बेटी कक्षा 12वीं में पहुंच गई थी। यहां आने के बाद उसे पता चला कि नानी के यहां रहकर बतौली में पढ़ने वाली बेटी की कक्षा कोरोना संक्रमण के कारण ऑनलाइन चल रही है, इसके लिए उसे मोबाइल की जरूरत पड़ेगी। इसके बाद वह जेल में खोले गए बैंक खाते में जमा आठ हजार रुपये उसे मोबाइल खरीदने दे दिया, ताकि उसकी पढ़ाई प्रभावित न हो। मोबाइल खरीदने पिता के हाथों मिले एकमुश्त आठ हजार रुपये को देख बेटी की आंखों से आंसू निकल आए।

आनंद का कहना है कि 15 अगस्त को सजा माफी के तहत रिहाई की खबर जैसे ही जेल प्रबंधन से उसके घर में फोन से दी गई, तो बेटी यागिनी और पत्नी काफी खुश थे। जेल से बाहर निकलने की पारी आई तो, बारी-बारी से सजा माफी में रिहा होने वाले बंदियों का नाम पुकारा गया। जैसे ही उसका नंबर आया और गांव-घर से लेने परिजन के बारे में पूछा गया, तो उसकी पत्नी बालमति सामने खड़ी थी।

आनंद ने जेल में रहते बागवानी और बढ़ईगीरी का काम सीखा है। घर आते समय वह बढ़ईगीरी के लिए एक हजार रुपये का बटाली, आरी, रेती, वसूला जैसा जरूरी सामान खरीद लाया, ताकि खेती-बाड़ी संभालने के साथ वह सीखी गई कला की बदौलत कुछ आय अर्जित कर सके। उसकी मंशा घर में ही लकड़ी का काम करने की है। सरकारी मदद मिलने पर वह घर में ही कारखाना खोल औरों को रोजगार देने की मंशा रखा है।

आनंद बताता है कि जेल में रहने के दौरान उसे बागवानी विकसित करने का गुर सीखने का मौका मिला। गांव आने के बाद वह पत्नी के साथ सबसे पहले खेत-बाड़ी की ओर गया। दो दिन परिवार के बीच समय देने के बाद खेती करने के साथ ही फलदार पौधों को लगा रहा है, ताकि आने वाले समय में फल उसकी आय का हिस्सा बने। बागान में वह जामुन सहित अन्य फलदार पौधे लगाया है।

आनंद की इकलौती बेटी यामिनी नागेश कक्षा 12वीं की शिक्षा विज्ञान संकाय से हासिल कर रही है। बातचीत के दौरान उसने कहा कि चिकित्सा के क्षेत्र में उसकी रुचि है। शासकीय स्कूल बतौली में अध्ययनरत यागिनी को 10वीं कक्षा में 69 प्रतिशत अंक प्राप्त हुआ था। 12वीं में मेरिट स्थान पाने को वह लालायित है।

आनंद आजीवन कारावास की सजा के बीच अनुशासनबद्ध रहा। बागवानी के देखरेख की जिम्मेदारी उसकी थी। स्वयं रुचि लेकर बढ़ई का काम भी करता था। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वे ऐसे भाइयों को अपने साथ रखकर उनका मार्ग प्रशस्त करेंगे। सजा माफी में बाहर निकले बंदियों को पुनर्वास का मौका मिले इसके लिए भी वे पहल कर रहे हैं

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