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टापू में फंसे बंदरों को बाहर निकालने में वन विभाग को मिली सफलता…

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कांकेर। दुधावा बांध के बीच बने टापू में फंसे बंदरों को बाहर निकालने में आखिरकार वन विभाग को सफलता मिल गई। सात दिन से चल रहे रेस्क्यू अभियान के बाद आधे से अधिक बंदर वन विभाग द्वारा तैयार किये गए पुल के सहारे टापू से बाहर निकल आए हैं। उम्मीद जताई जा रही है, जल्द ही बाकी बंदर भी बाहर निकल आएंगे। दुधावा में बने बांध के बीच कर्क ऋषि पहाड़ी डोड्रा डोंगरी में फंसे लगभग सौ बंदरों के झूंठ को टापू से बाहर निकालने के लिए वन विभाग ने बांस बल्लियों के सहारे पुल निर्माण किया था। 18 नवंबर को पुल निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया था। लेकिन पुल बनने के बाद भी बंदर टापू से बाहर नहीं आ रहे थे। इसके बाद पुल निर्माण को लेकर सवाल उठने लगे थे और अंदेशा जताया जा रहा था कि गहरे पानी के बीच बने पुल से बंदर बाहर नहीं आएंगे। लेकिन गुरुवार सुबह एक-एक कर 50 से अधिक बंदर दुधावा बांध के बीच बने टापू से बाहर निकलने लगे।

वनकर्मियों ने काफी दूर से बंदरों को टापू से बाहर निकलने को अपने मोबाइल पर रिकार्ड कर लिया। वन विभाग अभी अस्थायी रूप से बनाए गए पुल को हटाने की जल्दी में नहीं है और टापू में और बंदर है या नहीं इस बात की जांच करने की बात कह रहा है। वन विभाग के डीएफओ अरविंद ने बताया कि अब तक 50 से 60 बंदरों के टापू से बाहर निकलने की जानकारी मिली है। टापू में और बंदर फंसे हुए हैं या नहीं इसकी जांच कराई जा रही है। टापू पर फंसे बंदरों को बाहर निकालने के लिए 16 नवंबर से अस्थायी पुल बनाने का कार्य शुरू किया गया था। इसे तीन दिन में ही 18 नवंबर को पूरा कर लिया गया। बंदरों को टापू से बाहर निकालने के लिए वन विभाग बांस और बल्लियों से सवा तीन सौ मीटर लंबे पुल का निर्माण किया था। इसके लिए 20 मजदूरों व 18 वनकर्मियों को काम पर लगाया गया था। पुल को तैयार करने में 500 बांस, 200 बल्ली, 50 लोहे की पाइप और 30 किलो रस्सी का उपयोग किया गया है।

पुल तैयार होने के बाद पुल में केले लटका दिये गए हैं। इसे खाने के लिए बंदर पुल के सहारे टापू से बाहर निकल आए। वन विभाग ने तीन दिन की कड़ी मशक्कत के बाद बांस का पुल तैयार किया था। लेकिन पुल निर्माण के बाद भी बंदरों को टापू से बाहर निकालने में दो दिनों तक वन विभाग को कामयाबी नहीं मिल सकी थी। एक भी बंदर पुल के सहारे टापू से बाहर नहीं आया था। इस पर विभाग के अधिकारियों का कहना था कि बंदरों का पेट भरा होने के कारण वे पुल के सहारे बाहर नहीं आ रहे हैं। भूख लगने पर बंदर बाहर आएंगे। बंदरों का एक झूंड लगभग तीन महीने से दुधावा बांध के टापू पर फंसा हुआ था। 11 नवंबर की रात वन विभाग को इसकी सूचना मिली थी।

सूचना मिलने पर 12 नवंबर को क्षेत्र के रेंजर, वनकर्मी व ग्रामीण नाव के माध्यम से टापू में जाकर देखा गया तो बंदरों का झूंड वहां फंसा हुआ था। इनके लिए तत्काल वन विभाग ने गांव के लोगों के मदद से भोजन की व्यवस्था की गई थी और रोजना बंदरों के लिए वनकर्मी मोटर बोट के जरिये अमरूद, पपीता, सब्जियां आदि नियमित रूप से पहुंचा रहे थे। बताया जा रहा है कि बारिश के शुरुआती दिनों में जब दुधावा बांध का जल स्तर कम था, तो बंदरों का झूठ इस टापू पर पहुंचा था, लेकिन बारिश के बाद दुधावा बांध का जल स्तर बढ़ गया। जलस्तर बढ़ने के कारण बंदरों का झूठ टापू पर ही फंस गया था। टापू के पेड़-पौधों के पत्तियां खाकर बंदर जिंदा थे। इसी बीच मछुआरों के एक दल ने टापू पर बंदरों को देखा था। इसके बाद उन्होंने धमतरी के जल संसाधन विभाग को सूचना दी थी, इसके बाद यह जानकारी वन विभाग तक पहुंची थी।

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